वॉशिंगटन. आधुनिक युद्ध में ड्रोन की भूमिका सबसे अहम हो गई है. यूक्रेन से लेकर मिडिल ईस्ट तक हर जगह ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन अभी तक के छोटे ड्रोन में एक बड़ी कमी है. वे ज्यादा वजन नहीं उठा सकते हैं. इसी कमी को दूर करने के लिए अमेरिका का रक्षा विभाग पेंटागन एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है. पेंटागन की रिसर्च एजेंसी ‘डार्पा’ (DARPA) ने एक नया कॉम्पिटिशन लॉन्च किया है. इसका नाम ‘लिफ्ट’ रखा गया है. इसका मकसद मल्टीरोटर ड्रोन ऑपरेशन्स में क्रांति लाना है. अमेरिका ऐसे मानवरहित सिस्टम बनाना चाहता है जो अपने वजन से चार गुना ज्यादा भार उठा सकें. अभी तक के छोटे ड्रोन के लिए पेलोड-टू-वेट रेशियो (भार उठाने की क्षमता) आमतौर पर एक-से-एक का ही होता है. अगर यह मिशन सफल रहा तो युद्ध के मैदान का नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा.
क्या है डार्पा का लिफ्ट मिशन: डार्पा का यह मिशन मिलिट्री और कमर्शियल दोनों सेक्टर के लिए है. डार्पा के लिफ्ट कॉन्टेस्ट के लीड फिलिप स्मिथ ने इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने ब्रेकिंग डिफेंस को बताया कि मिलिट्री और इंडस्ट्री के पास ड्रोन को लेकर बड़े सपने हैं. वे इसके कई इस्तेमाल देखते हैं. लेकिन हकीकत में वे जो पेलोड चाहते हैं उसके लिए बड़े एयरक्राफ्ट की जरूरत होती है. बड़े एयरक्राफ्ट काफी महंगे होते हैं. स्मिथ का कहना है कि अगर हम इसे बदल सकें तो बहुत फायदा होगा. अगर हम ड्रोन को बहुत छोटा और सस्ता बना दें तो यह सपना सच हो सकता है. इससे मिलिट्री और सिविलियन दोनों सेक्टर में इसका इस्तेमाल बढ़ेगा. डार्पा का लक्ष्य इस कॉम्पिटिशन को गर्मियों में आयोजित करने का है.
ड्रोन बनाने वालों के लिए कड़ी शर्तें: इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वालों के लिए कई कड़े नियम बनाए गए हैं:
* सबसे पहले ड्रोन का वजन 55 पाउंड (करीब 25 किलोग्राम) से कम होना चाहिए.
* ड्रोन को बिना किसी मदद के टेकऑफ करना होगा.
* उसे कम से कम 110 पाउंड (करीब 50 किलोग्राम) का पेलोड उठाना होगा.
* यह पेलोड उसे चार नॉटिकल माइल्स (करीब 7.5 किलोमीटर) तक ले जाना होगा.
* पेलोड को सुरक्षित जगह पर ड्रॉप करना होगा.
* इसके बाद ड्रोन को एक नॉटिकल माइल और उड़ना होगा और सटीक लैंडिंग करनी होगी.
* यह पूरा काम 30 मिनट से कम समय में पूरा करना होगा.
* टीमों को इस टास्क के लिए 90-90 मिनट के दो विंडो मिलेंगे. इसमें उन्हें अपना बेस्ट स्कोर पोस्ट करना होगा.
हवा में ऊंचाई और कंट्रोल का टेस्ट: सिर्फ वजन उठाना ही काफी नहीं होगा. ड्रोन को एक निश्चित ऊंचाई पर उड़ना होगा. यह ऊंचाई करीब 350 फीट तय की गई है. इसमें 50 फीट कम या ज्यादा की छूट मिलेगी. ड्रोन को एक सकरे सर्किट में दो बिंदुओं के बीच कई चक्कर लगाने होंगे. सबसे अहम बात यह है कि ड्रोन पायलट की नजरों के सामने (विजुअल लाइन-ऑफ-साइट) रहना चाहिए. इस प्रतियोगिता में अमेरिकी कंपनियों को लीड करना होगा. अगर कोई व्यक्ति हिस्सा ले रहा है तो उसका अमेरिकी नागरिक या परमानेंट रेजिडेंट होना जरूरी है. हालांकि उनके साथ विदेशी टीममेट हो सकते हैं. शर्त यह है कि वे किसी ऐसे देश से न हों जिस पर पेंटागन ने प्रतिबंध लगा रखा हो.
जीतने के लिए क्या होगा पैमाना: प्रतिभागियों को मुख्य रूप से उनके पेलोड-टू-वेट रेशियो के आधार पर नंबर मिलेंगे. इसका मतलब है कि जो ड्रोन कम वजन का होकर ज्यादा भार उठाएगा वह जीतेगा. उदाहरण के लिए ड्रोन को कम से कम 110 पाउंड वजन उठाना है. मान लीजिए एक ड्रोन 20 पाउंड का है और वह यह वजन उठा लेता है. वहीं दूसरा ड्रोन 30 पाउंड का है और वह भी इतना ही वजन उठाता है. इस स्थिति में 20 पाउंड वाला ड्रोन ज्यादा स्कोर करेगा. 110 पाउंड तो सिर्फ शुरुआती सीमा है. डार्पा देखना चाहता है कि 55 पाउंड से कम वजन वाला ड्रोन अधिकतम कितना भार उठा सकता है. यह तकनीक भविष्य में लॉजिस्टिक्स की दुनिया बदल सकती है.
चुनौती मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं: फिलिप स्मिथ ने जोर देकर कहा कि यह प्रतियोगिता आसान नहीं होने वाली है. लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह संभव है. चार-से-एक का पेलोड-टू-वेट रेशियो एक बहुत बड़ा लक्ष्य है. इंडस्ट्री से इनपुट लेने के बाद ही इसे तय किया गया है. स्मिथ के मुताबिक कुछ तकनीक इस लक्ष्य को मुमकिन बना सकती हैं. इनमें फ्लाइट कंट्रोल, स्ट्रक्चर, मटीरियल और पावरट्रेन में होने वाले सुधार शामिल हैं. अगर कोई डिजाइन सफल होता है तो उसे बाद में बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है. यह भविष्य के युद्धों के लिए गेम चेंजर साबित होगा. सेना को सामान पहुंचाने में आसानी होगी.
चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल की मिली छूट: इस प्रतियोगिता की एक खास बात और है. इसमें हिस्सा लेने वाले ड्रोन का NDAA-कंप्लायंट होना जरूरी नहीं है. आमतौर पर अमेरिकी सेना में चीनी उपकरणों या पार्ट्स पर प्रतिबंध होता है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. स्मिथ ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें हिस्सा ले सकें. अभी इस इंडस्ट्री में सस्ते चीनी कंपोनेंट्स का दबदबा है. अगर कड़े नियम होते तो कई लोग हिस्सा नहीं ले पाते. स्मिथ ने कहा कि डार्पा यह दिखाना चाहता है कि यहां अमेरिकी इंडस्ट्री में एक गैप है. इस प्रतियोगिता से नए डिजाइनों को लेकर उत्साह पैदा होगा. इससे निवेश के रास्ते खुलेंगे.
वक्त कम है और काम ज्यादा: डार्पा ने इस प्रतियोगिता के लिए बहुत कम समय दिया है. साथ ही इसमें कई तरह की बाधाएं भी हैं. स्मिथ ने माना कि प्रतियोगियों के लिए चीजें गलत भी हो सकती हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि यह इवेंट पब्लिक नेचर का है. इससे ‘आउट-ऑफ-द-बॉक्स’ सोच वाले डिजाइन सामने आएंगे. ये डिजाइन एक बड़े ऑडियंस के सामने आएंगे. इससे कुछ लोग प्रेरित होकर आगे बढ़ सकते हैं. वे अलग-अलग विचारों को मिलाकर कुछ नया बना सकते हैं. अमेरिका चाहता है कि वह ड्रोन तकनीक में सबसे आगे रहे. यह पहल उसी दिशा में एक कदम है.
छोटे ड्रोन क्यों हैं जरूरी: आजकल युद्ध में लॉजिस्टिक्स सबसे बड़ी समस्या है. सैनिकों तक हथियार और रसद पहुंचाना जोखिम भरा होता है. बड़े हेलिकॉप्टर या विमान दुश्मन की रडार में आ जाते हैं. ऐसे में छोटे ड्रोन बहुत काम आ सकते हैं. अगर एक छोटा और सस्ता ड्रोन 50 किलो वजन उठा ले तो यह बहुत बड़ी बात होगी. कई सारे ड्रोन मिलकर टनों सामान पहुंचा सकते हैं. अगर दुश्मन इन्हें मार भी गिराए तो आर्थिक नुकसान कम होगा. यही वजह है कि पेंटागन इस प्रोजेक्ट पर इतना जोर दे रहा है. यह प्रोजेक्ट सफल हुआ तो सप्लाई चेन का तरीका बदल जाएगा.


