डोनाल्ड ट्रंप दोबारा सत्ता में आए तो दुनिया डर गई थी, क्योंकि सबको पता था कि उनकी विदेश नीति अनिश्चित और टकराव वाली होगी. रूस, चीन, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ उनकी दोस्ती NATO, यूरोप, जापान, साउथ कोरिया को परेशान कर रही थी. लेकिन हकीकत ठीक उलट है. ट्रंप तो वही हैं… बस दुनिया बदल गई है. और इसी के साथ सामने आया ट्रंप फैमिली का ‘क्राइसिस से कमाई’ वाला मॉडल. पुतिन जो चालें चल रहे हैं, उससे साफ हो है गया कि वो लड़ाई को कभी लड़ाई की तरह नहीं देखते, बल्कि एक मुनाफे की विंडो की तरह देखते हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान बड़े संकट में था, लेकिन इसी बीच ट्रंप कंपनी के लोग रावलपिंडी और इस्लामाबाद में चक्कर काटते दिखे. और फिर चंद ही दिनों में घोषणा हुई कि ट्रंप-लिंक्ड एक फर्म पाकिस्तान के साथ एक लुभावना क्रिप्टो-फंडिंग सौदा कर रही है. दूसरा झटका इससे भी बड़ा है. अब, जब वो यूक्रेन पीस प्लान की बात कर रहे हैं, उनकी नजर सीधे रूस के सेंट्रल बैंक की उन 300 अरब डॉलर की संपत्तियों पर है जिन्हें पश्चिमी देशों ने युद्ध के बाद फ्रीज कर रखा है.
पहला मामला, संकट पाकिस्तान का, लेकिन कमाई ट्रंप फैमिली की. 22 अप्रैल को पहलगाम हमला हुआ. पूरी दुनिया पाकिस्तान को घेर रही थी. इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) दबाव में था. वह फंड रोकने वाला था. अमेरिका नाराज था, और सेना पर टेरर पॉलिसी बदलने का प्रेशर था. ठीक इसी वक्त ट्रंप कैंप से जुड़े कुछ चेहरे पाकिस्तान पहुंचते हैं और क्रिप्टो डील का पूरा खेल शुरू होता है. रिपोर्ट्स कहती हैं कि ट्रंप को पाकिस्तान को डीसेंट्रलाइल्ड फाइनेंस और क्रिप्टो सेक्टर में बड़ी विदेशी भागीदारी चाहिए थी. ट्रंप से जुड़े निवेशकों ने रिकवरी टोकन मॉडल का ऑफर दिया. पाकिस्तान की सरकार ने इसे एक नया रास्ता बताया.

इसमें किसका फायदा?
सबसे बड़ा फायदा ट्रंप ग्रुप को हुआ, क्योंकि ऐसे टोकन की वैल्यू सीधे राजनीतिक रिश्तों पर निर्भर होती है. पाकिस्तान को लगा कि अमेरिका में नई सरकार के साथ जुड़ने से फायदा होगा. ट्रंप को लगा पाकिस्तान सरकार मुसीबत में फंसी है. यानी लो-रिस्क हाई-रिटर्न डील मिल जाएगी. और यही पैटर्न आपको बाकी जगहों पर भी दिखेगा.
तालिबान-टीटीपी की बीच की आग, लेकिन ट्रंप को सिर्फ बिजनेस दिखा
पाकिस्तान और तालिबान के बीच हालात पिछले साल से ही बिगड़े हुए हैं. टीटीपी के हमले बढ़े, पाकिस्तान ने बॉर्डर पर बमबारी शुरू की, तालिबान नाराज.. लेकिन अमेरिका की तरफ से इस पूरे तनाव में एक ही चीज उभरी, कौन-सी नई कमजोरी है जिसे कैश किया जा सकता है. पाकिस्तान अमेरिका को खुश रखना चाहता था. ट्रंप इस पूरी स्थिति को लीवरेज कहकर मुस्कुरा रहे थे. पत्रकारों ने पूछा, क्या ये सब जियोपॉलिटिक्स है? तो कुछ ने कहा, नहीं ये सीधे-सीधे बिजनेस है.
यूक्रेन की जंग में पैसा बनाने का मौका
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के साथ ही कहा- मैं 24 घंटों में युद्ध रोक दूंगा. लेकिन जैसे-जैसे उनकी पीस प्लान की डीटेल लीक हुईं, समझ में आया कि यह योजना शांति से ज्यादा पैसों के इर्द-गिर्द घूम रही है. पश्चिमी देशों ने रूस के सेंट्रल बैंक की लगभग 300 बिलियन डॉलर की संपत्तियां फ्रीज कर रखी हैं. ये इतिहास का सबसे बड़ा फ्रीजिंग ऑपरेशन है. वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप इस पैसे का इस्तेमाल करना चाहते हैं. ट्रंप टीम की आधिकारिक लाइन है, इस पैसे का इस्तेमाल यूक्रेन के पुनर्निर्माण में होगा. लेकिन अंदरखाने ये बातें कही जा रही हैं कि इनोवेशन की आड़ में इन्वेस्टमेंट का खेल चल रहा है. ट्रंप प्रशासन के करीबी आर्थिक सलाहकार इस फंड को ग्लोबल रीकंस्ट्रक्शन ट्रस्ट में बदलने का सुझाव दे रहे हैं. और कहा जा रहा कि इस ट्रंस्ट का मैनेजमेंट ट्रंप से जुड़े इन्वेस्टर्स को मिलने वाला है. ट्रंप खुद इसका सुझाव दे रहे हैं. मतलब सीधे-सीधे रूस का पैसा अब ट्रंप के काम आएगा.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का रिकॉर्ड एक बात साफ करता है, वे जियोपॉलिटकल क्राइसिस को मुनाफे का जरिया मानते हैं. 22 अप्रैल को भारतीय कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले के कुछ ही दिनों के भीतर, उनकी पारिवारिक कंपनी ने पाकिस्तान के साथ एक शानदार क्रिप्टो डील की. अब, अपनी यूक्रेन शांति योजना को आगे बढ़ाते हुए, उनकी नजर पश्चिम द्वारा जब्त की गई रूसी केंद्रीय बैंक की 300 अरब डॉलर की संपत्ति पर है.
–ब्रह्मा चेलानी, सामरिक मामलों के जानकार
अगर पिछले दस सालों में ट्रंप फैमिली की रणनीति को एक लाइन में समझना हो, तो बस इतना कहिए जहां संकट, वहां कमाई का मौका. किसी देश में संकट हो, ट्रंप टीम तुरंत एक न्यू फाइनेंशियल मॉडल लेकर पहुंच जाती है. ऑफर होता है कि हम सुलझा देंगे, बस इसके एवज में…कुछ एग्रीमेंट चाहिए. फंसा हुआ देश हां कहने को मजबूर हो जाता है. और इसी के साथ ट्रंप कैंप को मिलती है नई कमाई की खिड़की. यह मॉडल पूरी तरह कॉर्पोरेट-स्टाइल जियोपॉलिटिक्स है. जहां युद्ध भी एक मार्केट है, शांति भी एक मार्केट, और संकट भी एक मार्केट.
यूक्रेन प्लान के पीछे असली राजनीति क्या है?
क्या ट्रंप वाकई पुतिन की संपत्ति खर्च करना चाहते हैं? कई विश्लेषक कहते हैं, यह कदम रूस को चौंकाने के लिए हो सकता है. क्योंकि पुतिन कभी नहीं चाहेंगे कि उनके पैसे से यूक्रेन का निर्माण हो. लेकिन कुछ विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि कि ट्रंप एक तीर से दो निशाने लगाना चाहते हैं. यूक्रेन को दिखाना कि देखो, मैं मदद कर रहा हूं और दूसरी ओर रूस को दिखाना कि अगर तुम डील चाहते हो, तो मेरी शर्तें सुनो. यानी डील के दोनों छोर पर वही फायदा में.
दुनिया का संकट क्या ट्रंप के लिए कमाई का मौका?
जियोपॉलिटिक्स में आजकल एक बात की खूब चर्चा है कि जहां दूसरे नेता शांति देखते हैं, ट्रंप वहां लाभ देखते हैं. और शायद यही वजह है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस-यूक्रेन युद्ध, यूरोप का ऊर्जा संकट, अमेरिका-चीन टकराव, हर जगह ट्रंप टीम नया बिजनेस मॉडल लेकर घूम रही है. कहीं टोकन, कहीं ट्रस्ट फंड, कहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर डील, कहीं तेल-गैस कॉरिडोर. जहां से बेहतर डील मिल जाए, बात वहीं पक्की.
आखिर ट्रंप फैमिली की असली दिलचस्पी कहां है?
सवाल यह है क्या ये सब सिर्फ बिजनेस है, या इसके पीछे राजनीतिक चाल भी है? विशेषज्ञ कहते हैं- दोनों. ट्रंप का हर कदम ये बताता है कि वह अमेरिका की ताकत को मनी मल्टीप्लायर की तरह देखते हैं अमेरिका के दोस्त या दुश्मन दोनों उनके लिए बाजार हैं. और वैश्विक संकट उनका पसंदीदा इकोनॉमिक मौके हैं. उनके आलोचक कह रहे हैं, दुनिया जलती रहे तो रहे, ट्रंप सिर्फ इतना देखते हैं कि धुएँ में कितना प्रॉफिट छिपा है.



