You are currently viewing ओ भाई! मैदा-सूजी से प्रोटीन ने रहे भारतीय, नमक, तेल-चीनी की तो पूछिए ही मत, चौंका देगी CEEW की ये स्टडीindian people are taking protein maida-sooji and grains ceew study reveals protein inequality and salt sugar oil high consumption in Indian diet

ओ भाई! मैदा-सूजी से प्रोटीन ने रहे भारतीय, नमक, तेल-चीनी की तो पूछिए ही मत, चौंका देगी CEEW की ये स्टडीindian people are taking protein maida-sooji and grains ceew study reveals protein inequality and salt sugar oil high consumption in Indian diet


भारतीयों के खाने में प्रोटीन की मात्रा का लगभग आधा हिस्सा अब चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसे अनाजों से आता है. यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक नए स्वतंत्र अध्ययन से सामने आई है. इसमें 2023-24 एनएसएसओ घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) आंकड़ों के आधार पर खान-पान के रुझानों का विश्लेषण किया गया है.

भारतीय पर्याप्त मात्रा में, औसतन 55.6 ग्राम प्रतिदिन, प्रोटीन का सेवन करते हैं लेकिन इस अध्ययन में पाया गया है कि इस प्रोटीन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा अनाजों से आता है, जिनमें कम गुणवत्ता वाले अमीनो एसिड होते हैं और वे आसानी से पचते नहीं हैं. प्रोटीन में अनाजों की यह हिस्सेदारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) की ओर से सुझाई गई 32 प्रतिशत की मात्रा से बहुत अधिक है. जबकि दालें, डेयरी उत्पाद और अंडे, मछली, मांस जैसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन के स्रोत भोजन से बाहर जा रहे हैं. प्रोटीन शारीरिक विकास, सुधार और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करता है. सीईईडब्ल्यू अध्ययन में यह भी पाया है कि भोजन में सब्जी, फल और दाल जैसे प्रमुख खाद्य समूहों का सेवन कम है, जबकि खाना पकाने के तेल, नमक और चीनी की अधिकता है.

फल और दूध में भी भारी असमानता

भारतीय लोगों की डाइट में फल और दूध में भी असमानता है.
भारतीय लोगों की डाइट में फल और दूध में भी असमानता है.

अपूर्व खंडेलवाल, फेलो, सीईईडब्ल्यू ने कहा, ‘यह अध्ययन भारत की खाद्य प्रणाली में एक छिपे हुए संकट को सामने लाता है, जैसे कम गुणवत्ता के प्रोटीन पर बहुत अधिक निर्भरता, अनाजों व तेलों से अतिरिक्त कैलोरी का सेवन, विविधतापूर्ण व पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य सामग्री का बहुत कम उपयोग. सबसे गरीब 10 प्रतिशत घरों का एक व्यक्ति एक सप्ताह में केवल 2-3 गिलास दूध और 2 केले के बराबर फल खाता है, जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत घरों का एक व्यक्ति 8-9 गिलास दूध और 8-10 केले के बराबर फल खाता है. खान-पान का यह अंतर संतुलित आहार तक पहुंच में व्यापक असमानता दर्शाता है. इसी के साथ, पोषण और आय के लिए सिर्फ कुछ फसलों पर अत्यधिक निर्भरता इसका जलवायु अनुकूलन घटा देती है. इसलिए खाने की थाली से लेकर खेत तक विविधता लाना, एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए.’

बीते एक दशक में भारत का प्रोटीन सेवन थोड़ा बढ़ा है लेकिन यह पर्याप्त है. भारत के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत प्रोटीन सेवन 2011-12 और 2023-24 के बीच 60.7 ग्राम से बढ़कर 61.8 ग्राम और शहरी क्षेत्रों में 60.3 ग्राम से बढ़कर 63.4 ग्राम हो गया है.

गरीब-अमीर के बीच है गहरी खाई
सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि इन औसतों के पीछे गहरी असमानता मौजूद है. भारत की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब आबादी की तुलना में अपने घर पर 1.5 गुना अधिक प्रोटीन का सेवन करती है, और पशु-आधारित प्रोटीन के स्रोतों तक उसकी पहुंच भी अधिक है. उदाहरण के लिए, ग्रामीण आबादी के सबसे गरीब 10 प्रतिशत लोगों में दूध का सेवन सुझाए गए स्तर (अनुशंसित स्तर) का सिर्फ एक तिहाई है, जबकि सबसे अमीर लोगों में यह सुझाए गए स्तर से 110 प्रतिशत से अधिक है. अंडे, मछली और मांस के लिए भी ऐसा ही रुझान दिखाई देता है. सबसे गरीब परिवार एनआईएन के सुझाए गए स्तर (अनुशंसित दैनिक भत्ते) का सिर्फ 38 प्रतिशत हिस्सा पूरा कर पाते हैं, जबकि सबसे अमीर परिवारों में 123 प्रतिशत से अधिक होता है. महत्वपूर्ण होने के बावजूद, अरहर, मूंग और मसूर जैसी दालों की भारत के प्रोटीन सेवन में हिस्सेदारी अब सिर्फ 11 प्रतिशत है, जो सुझाए गए 19 प्रतिशत से काफी कम है और सभी राज्यों में इनका सेवन भी कम है.

मोटे अनाजों में काफी पीछे भारतीय

भारतीयों की थाली में मोटे अनाजों का उपयोग घट गया है.
भारतीयों की थाली में मोटे अनाजों का उपयोग घट गया है.

अभी भी भारत का खान-पान अनाज और खाना पकाने के तेलों की तरफ बहुत अधिक झुका हुआ है और ये दोनों ही पोषण संबंधित प्रमुख असंतुलन में भूमिका निभाते हैं. लगभग तीन-चौथाई कार्बोहाइड्रेट अनाज से आता है और प्रत्यक्ष अनाज का सेवन अनुशंसित दैनिक भत्ते से 1.5 गुना अधिक है, जिसे निम्न-आय वाले 10 प्रतिशत हिस्से में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए रियायती चावल और गेहूं की व्यापक उपलब्धता से और बल मिलता है. मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा और रागी के घरेलू उपभोग में सबसे ज्यादा गिरावट आई है. बीते एक दशक में प्रति व्यक्ति इसकी खपत लगभग 40 प्रतिशत गिरी है। इसके चलते भारतीय मुश्किल से मोटे अनाज के लिए सुझाए गए स्तर का 15 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा कर पाते हैं.

तेल-नमक और चीनी में तोड़ रहे रिकॉर्ड
इसी के साथ-साथ पिछले एक दशक में सुझाए गए स्तर से 1.5 गुना अधिक वसा और तेल का सेवन करने वाले परिवारों का अनुपात दोगुने से भी अधिक हो गया है. इतना ही नहीं, उच्च आय वाले परिवारों में वसा का सेवन निम्न आय वर्ग की तुलना में लगभग दोगुना पहुंच गया है.

पिछले एक दशक में भारत में फाइबर सेवन (रेशे वाली खाद्य सामग्री) में थोड़ा सुधार आया है. यह प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 28.4 ग्राम से बढ़कर 31.5 ग्राम हो गया है, जो सुझाए गए 32.7 ग्राम के स्तर के नजदीक है लेकिन इस फाइबर का अधिकांश हिस्सा दालों, फलों, मेवे (नट्स) और विभिन्न सब्जियों जैसे अधिक फाइबर वाले खाद्य पदार्थों के बजाए अनाज से आता है. शाकाहारियों और मांसाहारियों दोनों ही श्रेणियों में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन बहुत कम है. यह पाचन स्वास्थ्य, आंत के माइक्रोबायोटा संतुलन और दीर्घकालिक रोग की रोकथाम को कमजोर करता है.

भारतीय प्रतिदिन लगभग 11 ग्राम नमक का सेवन करते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझाए गए 5 ग्राम के स्तर से दोगुना से भी अधिक है. इस नमक सेवन में से 7 ग्राम से अधिक नमक घर पर पकाए गए खाने से आता है, जबकि बाकी हिस्सा परिष्कृत और परोसे गए खाद्य पदार्थों से आता है, जो सुविधाजनक और पैकेज्ड उत्पादों पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है.

पीडीएस का चावल-गेंहू ही खा रहे लोग

दाल चावल में कई तरह के अमीनो एस‍िड्स होते हैं.
दाल चावल में कई तरह के अमीनो एस‍िड्स होते हैं.

सुहानी गुप्ता, रिसर्च एनालिस्ट, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “मोटे अनाज और दालें बेहतर पोषण होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन इन्हें प्रमुख खाद्य कार्यक्रमों, जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में कम इस्तेमाल किए जाते हैं, कम उपलब्ध कराए जाते हैं, जिनमें चावल और गेहूं की अधिकता बनी हुई है. वहीं, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि उच्च आय वाले परिवार सबसे गरीब परिवारों की तुलना में लगभग दोगुना वसा का सेवन करते हैं, जो कुपोषण के बढ़ते हुए दोहरे बोझ का संकेत देता है. इसे दूर करने के लिए अलग-अलग उपाय अपनाने की जरूरत है, जैसे विविधतापूर्ण, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुंच और मांग को मजबूत करना, विशेष रूप से कम आय समूहों के लिए, जबकि अमीर समूहों के लिए अतिरिक्त खपत को घटाना, और पैकेज्ड प्रोसेस्ड फूड की व्यवस्था को नए सिरे से तैयार करना.’

स्टडी में दिए गए ये सुझाव
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि व्यवस्ता के स्तर पर, प्रमुख सार्वजनिक खाद्य कार्यक्रमों जिनमें पीडीएस, पीएम पोषण और सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 शामिल हैं. इनमें सुधार करना जरूरी है, ताकि अनाज पर ज्यादा ध्यान देने के बजाय मोटे अनाजों, दालों, दूध, अंडे, फल और सब्जियों तक पहुंच बढ़ाई जा सके. इस परिवर्तन के लिए सरकारों, बाजारों और नागरिक समाज को एकसाथ मिलकर काम करना होगा. इसके तहत खरीद को क्षेत्रीय स्तर पर पौष्टिक खाद्य पदार्थों के साथ जोड़ने, स्कूलों व सामुदायिक मंचों में व्यवहार में बदलाव के प्रयासों को शामिल करने, निजी क्षेत्र की ओर से स्वस्थ खाद्य पदार्थों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने, और आहार संबंधी प्राथमिकताओं को बदलने के लिए मीडिया और डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स का इस्तेमाल करने जैसे कदम उठाए जाने चाहिए. बेहतर तालमेल और दृश्यता के साथ, भारत सिर्फ कैलोरी की पर्याप्त मात्रा से आगे बढ़कर दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने वाले अधिक संतुलित, विविधतापूर्ण और सतत खान-पान की दिशा में आगे बढ़ सकता है.



Source link

Leave a Reply