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Eight healthy babies born after IVF using DNA from three people| 3 माता-पिता से एक बच्चे का जन्म.


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Babies born from 3 People: इसे आप यकीन करें या न करें, 3 माता-पिता के संयोग से एक शिशु का जन्म हुआ है. ऐसा संभव हुआ है विज्ञान के कारण. इसे आप विज्ञान का करिश्मा कह सकते हैं. पर कैसे, आइए पूरी प्रक्रिया आपको सम…और पढ़ें

विज्ञान का करिश्मा, 3 माता-पिता से पैदा हुआ बच्चा, कैसे हुआ संभव, जानिए पूरी प

हाइलाइट्स

  • ब्रिटेन में तीन माता-पिता से बच्चे का जन्म विज्ञान का करिश्मा माना जाता है.
  • इस प्रक्रिया के सफल हो जाने के बाद अब आनुवांशिक बीमारियों से बचा जा सकता है.
  • ब्रिटेन में इस तकनीक की मदद से अब तक 8 बच्चों का जन्म हो चुका है. 1 जुड़वां है.
Babies born from 3 People: विज्ञान ने ऐसा करिश्मा किया है जिस पर आपको यकीन करना मुश्किल होगा. विज्ञान के करिश्मे के कारण 3 माता-पिता से बच्चे का जन्म संभव हुआ है. ऐसा एक नहीं बल्कि 8 बच्चे का जन्म हुआ. ये बच्चे शान से अब खेल रहे हैं क्योंकि इनकी उम्र 1 साल तक पहुंच गई है. लंदन में पैदा लिए इन सभी 8 बच्चों की खासियत यह है कि ये सभी बच्चे तीन माता-पिता से जन्म लिए हैं. इससे पहले कि आप यह सोचें कि 3 माता-पिता से जन्म लेने की क्या दरकार थी, यहां बता दूं कि इसका खास मकसद है. ऐसा बच्चों में गंभीर आनुवांशिक बीमारी न हो, इसलिए विज्ञान ने इस तरह का करिश्मा किया है. आइए अब इसकी पूरी प्रक्रिया बताते हैं.

तीन माता-पिता से जन्म लेने की क्या जरूरत
तीन माता-पिता की इसलिए दरकार हुई क्योंकि कुछ लोगों में माइटोकॉन्ड्रिया से संबंधित गंभीर आनुवांशिक बीमारी होती है. इसमें कोशिकाओं के अंदर माइटोकॉन्ड्रिया खराब हो जाता है. खराब माइटोकॉन्ड्रिया वाले माता-पिता से जब कोई संतान होती है तो उसमें गंभीर बीमारी पैदा होने लगती है. ऐसे पैदा लिए हुए बच्चों में मांसपेशियां बहुत कमजोर होती है, दिमाग संबंधी बीमारियां हो जाती है और हार्ट फेल्योर का खतरा होता है. कई बच्चों में विकास धीमा हो जाता है, उन्हें व्हीलचेयर की जरूरत होती है और वे कम उम्र में ही मर जाते हैं. ऐसे बच्चों में मृत्यु दर ज्यादा होती है. करीब 5000 बच्चों में एक बच्चा ऐसा पैदा ले लेता है. लेकिन इस तकनीक की मदद से अब ऐसे बच्चे पैदा नहीं लेंगे क्योंकि इनमें से खराब माइटोकॉन्ड्रिया को पहले ही बाहर कर दिया जाता है. अब आप यह समझ लीजिए कि माइटोकॉन्ड्रिया क्या होता है. माइटोकॉन्ड्रिया के बारे में दसवीं कक्षा से पहले ही पढ़ाई हो जाती है. माइटोकॉन्ड्रिया में ही एनर्जी बनती है. इसलिए इसे सेल का पावरहाउस कहा जाता है. अब आप खुद ही सोचिए कि यदि माइटोकॉन्ड्रिया में खराबी हुई तो हमें ऊर्जा या ताकत कहां से मिलेगी. हम कुछ भी काम करते हैं, चाहे वह सोचने का ही काम क्यों न हो, उसमें एनर्जी की जरूरत होती है. माइटोकॉन्ड्रिया यही एनर्जी बनाता है.

कैसे दूर की जाती है माइटोकॉन्ड्रिया की खामी
पहले यह जान लीजिए कि माइटोकॉन्ड्रिया कहां होते हैं. मानव शरीर या कोई भी जीव असंख्य कोशिकाओं से मिलकर बनता है. एक कोशिका 1 मिलीमीटर से करोड़ों गुना छोटी होती है. कोशिकाओं के अंदर एक केंद्रक या न्यूक्लियस होता है और बाकी की जगह में कई चीजें होती है. न्यूक्लियस के बाहर तरल पदार्थ होता है जिसमें ये सारी चीजें तैरती रहती है. माइटोकॉन्ड्रिया भी इसी प्रोटोप्लाज्म में तैरता रहता है. एक कोशिका में करीब सौ से 1000 के आसापास माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं. मानव शरीर में लगभग 20,000 जीन होते हैं जो कोशिकाओं के नाभिक में होते हैं. लेकिन नाभिक के चारों ओर मौजूद तरल में सैकड़ों से हजारों माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं जिनमें 37 अलग जीन होते हैं. इसी माइटोकॉन्ड्रिया में 37 अलग जीन होते हैं. इन जीनों में खराबी माइटोकॉन्ड्रिया को नुकसान पहुंचा सकती है. मनुष्य को उसके सभी माइटोकॉन्ड्रिया उसकी जैविक मां से मिलते हैं. अगर माइटोकॉन्ड्रिया में खराबी हो तो उस महिला की सभी संतानों को इसका असर झेलना पड़ता है. अब वैज्ञानिकों के सामने इसकी चुनौती थी कि इस माइटोकॉन्ड्रिया को हटाया कैसे जाए. अब इसका पूरा प्रोसेस जानिए.

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3 माता-पिता से बच्चे होने का प्रोसेस क्या है
द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरी प्रक्रिया आईवीएफ तकनीक से की जाती है. सबसे पहले माता के अंडाशय से सूई द्वारा अंडाणु को खींच लिया जाता है और इसे एक तश्तरी में रख दी जाती है. इसके बाद पिता के शुक्राणु को निकालकर अंडाणु के साथ फ्यूज कराया जाता है. इससे यह अंडाणु निषेचित हो जाता है. अब इसे निषेचित अंडाणु को जायगॉट कहा जाता है. ध्यान रखिए जायगॉट एक कोशिका वाला बन जाता है.इसमें माता-पिता के न्यूक्लियस में जो आनुवांशिक चीजें होती है वह सब एक न्यूक्लियस में आ जाता है. अब रहा माइटोकॉन्ड्रिया का सवाल तो वह न्यूक्लियस में नहीं होता है वह न्यूक्लियस से बाहर प्रोटोप्लाज्म में नहीं रहता. वैज्ञानिक ठीक इसी समय एक डोनर हेल्दी महिला के अंडाणु को परखनली में शुक्राणु के साथ निषेचित करवा लिया जाता है.अब इसे निषेचित अंडाणु से न्यूक्लियस को बाहर निकाल लिया जाता है. फिर असली मां से तैयार जो निषेचित अंडाणु या जायगॉट होता है उसमें से पूरे न्यूक्लियस को निकाल कर डोनर महिला वाले अंडाणु में इंसर्ट कर दिया जाता है. इससे असली मां में जो खराब माइटोकॉन्ड्रिया था वह वहीं रह गया और हेल्दी महिला में जो अच्छे माइटोकॉन्ड्रिया थे वह अंडाणु में इंसर्ट हो गया. दूसरी तरफ असली मां और पिता की सारी चीजें न्यूक्लियस में आ गई. इससे पैदा लेने वाले बच्चे में माइटोकॉन्ड्रिया वाली बीमारी नहीं होगी. इस प्रक्रिया को माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन या माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT) कहा जाता है.
mitochondria
माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT).

दुनिया भर के डॉक्टरों को था इंतजार
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की दो रिपोर्टों में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से अब तक आठ बच्चों का जन्म हो चुका है जो सात मांओं से पैदा लिए हैं. एक ट्वींस है. इन आठ में से पाँच बच्चे एक साल से छोटे हैं, दो की उम्र एक से दो साल के बीच है और एक बच्चा इससे बड़ा है. इन बच्चों के जन्म और उनके स्वास्थ्य की खबर का दुनिया भर के डॉक्टरों को इंतज़ार था क्योंकि ब्रिटेन ने 2015 में इस प्रक्रिया को कानूनी मंजूरी दी थी. 2017 में न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के एक क्लिनिक को पहला लाइसेंस मिला जहां इस तकनीक की शुरुआत की गई थी.न्यूकैसल टीम ने बताया कि 22 में से 8 महिलाएं (36%) MDT के बाद प्रेग्नेंट हुईं और 39 में से 16 महिलाएं (41%) PGT यानी प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग के बाद गर्भवती हुईं. यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों विधियों में सफलता की दर अलग क्यों रही, पर कुछ माइटोकॉन्ड्रियल दोष प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं.

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LAKSHMI NARAYAN

Excelled with colors in media industry, enriched more than 18 years of professional experience. L. Narayan contributed to all genres viz print, television and digital media. He professed his contribution in the…और पढ़ें

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