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ये है बच्चों का खामोश दुश्मन, डॉक्टर ने बताया कैसे करें बचाव और इलाज – Chhattisgarh News


बिलासपुर: हर साल लाखों बच्चों के शरीर में चुपचाप जहर बनकर घुस रहा है लेड. यह एक ऐसा जहरीला तत्व है जो धीरे-धीरे शरीर को अंदर से कमजोर कर देता है, खासकर बच्चों को. खून में इसकी मात्रा सामान्य से ज्यादा होने पर दिमाग, किडनी और व्यवहार पर बुरा असर पड़ता है. लोकल 18 ने इस गंभीर विषय पर बिलासपुर के डॉक्टर अखिलेश देवरस से विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बताया कि लेड कैसे हमारे शरीर में पहुंचता है, इसका असर कैसा होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है.

असर धीरे-धीरे दिखता है लेड का जहर

डॉ. देवरस के अनुसार, लेड पॉइजनिंग का असर तुरंत नहीं दिखता. यह धीरे-धीरे शरीर में जमा होता है. शुरू में इसके लक्षण मामूली लगते हैं जैसे – थकान, चिड़चिड़ापन, हल्का पेट दर्द. बच्चे तो अक्सर बिना लक्षणों के भी इसके शिकार हो जाते हैं. समय रहते इलाज न हो तो यह बड़ी बीमारी बन सकता है.

पुराने एल्युमिनियम कुकर बन सकते हैं खतरा

बहुत पुराने एल्युमिनियम कुकर, जिनकी परत घिस चुकी होती है, अगर उनमें खट्टी चीजें जैसे टमाटर या इमली बार-बार पकाई जाएं तो लेड खाने में घुल सकता है. यह शरीर में जाकर दिमाग, किडनी और नसों को नुकसान पहुंचा सकता है.

बचाव जरूरी, इलाज मुश्किल

डॉक्टर ने बताया कि लेड से बचाव के लिए किचन के पुराने बर्तनों की जांच जरूरी है. अगर बर्तन की सतह घिस गई है या रंग उतर गया है, तो उनका इस्तेमाल बंद करें. ब्रांड या चमक नहीं, बर्तनों की सेफ्टी ज्यादा जरूरी है. संदेह हो तो डॉक्टर से ब्लड टेस्ट जरूर कराएं.

इलाज संभव, लेकिन शुरुआती पहचान जरूरी

लेड पॉइजनिंग का इलाज संभव है, लेकिन इसकी पहचान समय पर होनी चाहिए. शुरुआती अवस्था में इलाज से शरीर से लेड की मात्रा कम की जा सकती है, लेकिन पहले से जो नुकसान हो चुका होता है, उसकी भरपाई पूरी तरह से नहीं हो पाती। इसलिए बेहतर है कि समय रहते सतर्क रहें.

लेड लंबे समय तक शरीर में जमा रहता है

एक बार शरीर में पहुंचने के बाद लेड आसानी से नहीं निकलता. यह हड्डियों, लिवर और किडनी में जमा हो सकता है और कई सालों तक शरीर में बना रह सकता है. धीरे-धीरे यह गंभीर बीमारियों का कारण बनता है.

बच्चे ज्यादा प्रभावित क्यों होते हैं?

बच्चों का शरीर और दिमाग विकास की अवस्था में होता है. लेड उनकी नसों और मानसिक विकास को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. इससे बच्चों में सीखने में परेशानी, व्यवहार में बदलाव और ध्यान की कमी देखी जा सकती है.

पानी भी बन सकता है लेड का स्रोत

अगर पानी पुरानी सीसे (लेड) वाली पाइपलाइन से आ रहा है, या टंकी में लंबे समय से जमा है, तो उसमें भी लेड हो सकता है. RO फिल्टर कुछ हद तक लेड को रोकने में मदद करता है, लेकिन इसकी समय-समय पर सर्विस जरूरी है.

किलेशन थैरेपी से निकल सकता है लेड

जब खून में लेड की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है तो डॉक्टर Chelation Therapy देते हैं. इसमें दवाएं दी जाती हैं जो खून में मौजूद लेड को बांधकर यूरिन के जरिए बाहर निकालती हैं. लेकिन यह इलाज तभी होता है जब स्थिति गंभीर हो. साथ ही इस दौरान मरीज की लगातार निगरानी की जाती है. लेड एक धीमा लेकिन खतरनाक जहर है, जो हमारी अनदेखी और लापरवाही से शरीर में प्रवेश करता है. बच्चों के लिए यह और भी खतरनाक है. जरूरी है कि हम सतर्क रहें, बर्तनों और पानी की गुणवत्ता पर ध्यान दें और समय रहते जांच कराएं. याद रखें, इलाज संभव है, लेकिन बचाव सबसे जरूरी है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.



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