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भारत में 16 करोड़ दिव्यांगों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. जबकि इनमें से अधिकांश को महंगे इलाज और क्वालिटी केयर की जरूरत पड़ती है. इस बात का खुलासा एनसीपीईडीपी सर्वे में हुआ है. सर्वे के अनुसार जो दिव्यांग बीमा के लिए आवेदन करते हैं उनमें से 53 फीसदी का आवेदन निरस्त कर दिया जाता है.
देश में 80 फीसदी दिव्यांगों के पास नहीं हेल्थ बीमा. गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए मेडिकल कवरेज बेहद जरूरी है. भारत में न केवल सरकार की ओर से पीएमजेएवाई यानि आयुष्मान भारत योजना के तहत लोगों को हेल्थ बीमा दिया जा रहा है बल्कि तमाम प्राइवेट कंपनियां भी स्वास्थ्य बीमा प्रदान कर रही हैं, इसके बावजूद बेहद चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल एनजीओ की ओर से जारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 80 फीसदी दिव्यांगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है.
एनसीपीईडीपी की ओर से बताया गया कि देश में करीब 16 करोड़ दिव्यांग हैं जिनके पास न तो सार्वजनिक और न ही निजी बीमा है. संगठन द्वारा 2023 से 2025 के बीच देशभर में किए गए एक सर्वेक्षण में 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 5,000 से ज्यादा दिव्यांगों पर किए गए सर्वे के मुताबिक भारत में 80 फीसदी दिव्यांगजनों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. विश्लेषण रिपोर्ट बताती है कि ऐसा भी नहीं है कि इन लोगों ने बीमा के लिए आवेदन नहीं किए हैं, आंकड़े बताते हैं कि 53 फीसदी दिव्यांग आवेदकों को बिना किसी स्पष्ट कारण बताए आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है.
सर्वे रिपोर्ट कहती है कि देश में संविधानिक गारंटी, भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) के निर्देशों और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (2016) के प्रावधानों के बावजूद दिव्यांगजन अब भी भेदभावपूर्ण अंडरराइटिंग प्रक्रियाओं, बहुत ज्यादा प्रीमियम, बीमा प्लेटफॉर्मों की अनुपलब्ध पहुंच और योजनाओं की अपर्याप्त जानकारी जैसी बाधाओं का सामना करते हैं. सर्वे में पता चला कि कई आवेदकों को केवल उनकी दिव्यांगता या पूर्व-स्थित स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर बीमा देने से मना कर दिया जाता है. विशेष रूप से ऑटिज़्म, मनोसामाजिक विकलांगता, बौद्धिक दिव्यांगता तथा थैलेसीमिया जैसी रक्त संबंधी स्थितियों वाले व्यक्तियों को बीमा नहीं दिया जाता.
एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने कहा कि यह श्वेतपत्र एक अत्यंत महत्वपूर्ण समय पर सामने आया है. जहां एक ओर सरकार आयुष्मान भारत (PM-JAY) का विस्तार कर 70 वर्ष से अधिक सभी वरिष्ठ नागरिकों को कवर कर रही है, वहीं दिव्यांगजन, जिनकी स्वास्थ्य संबंधी संवेदनशीलताएं समान या ज्यादा हैं, स्पष्ट रूप से इससे बाहर हैं. इस अंतर का कोई नीतिगत या तार्किक औचित्य नहीं है. दिव्यांगजन को सुलभ और व्यापक स्वास्थ्य बीमा से बाहर रखना केवल एक प्रणालीगत कमजोरी नहीं, बल्कि उनके अधिकारों का उल्लंघन है. जैसे-जैसे भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की ओर बढ़ रहा है, 16 करोड़ दिव्यांगजन और उनके परिवारों को समान सुरक्षा प्रदान करना एक नैतिक दायित्व और संवैधानिक जिम्मेदारी है.
इस दौरान आयुष्मान भारत के पूर्व मुख्य निदेशक इंदु भूषण ने कहा कि आयुष्मान भारत पैकेजों के स्कोप को बढ़ाने की जरूरत है. इसमें सिर्फ इलाज नहीं बल्कि बाद की केयर भी होनी चाहिए. इस स्कीम में दिव्यांगों को भी कवर किया जाता है लेकिन यह उनके सभी तरह के स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को वहन नहीं करती है. जबकि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का मतलब है सभी को फ्री इलाज देना ही नहीं बल्कि सभी की क्वालिटी और अफॉर्डेबल इलाज तक पहुंच होना है. दिव्यांग लोगों को कई बार बहुत मंहगे इलाजों की जरूरत पड़ती है जो वे उठा ही नहीं पाते, ऐसे में इन्हें भी 70 से ऊपर वाले लोगों की तरह ही बीमा कवर मिलना चाहिए.
वहीं भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पॉवरमेंट से एडिशनल सेक्रेटरी मनमीत कौर नड्डा ने कहा, हमने सभी स्कीमों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि उन्हें यूडीआईडी सिस्टम से जोड़ा जाए.

अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्…और पढ़ें
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्… और पढ़ें



