वॉशिंगटन से आई एक नई खबर ने भारत-अमेरिका रिश्तों में फिर कड़वाहट घोल दी है. अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने ईरान के ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े कारोबार पर नए प्रतिबंध लगाए हैं. इस बार सीधा निशाना कुछ भारतीय नागरिकों और कंपनियों को बनाया गया है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने ईरान के तेल और गैस कारोबार से जुड़ी डीलिंग में हिस्सा लिया. अमेरिका ने दावा किया कि इन भारतीयों ने ईरान की लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) और पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में भूमिका निभाई. वाशिंगटन का कहना है कि इससे ईरान को अरबों डॉलर की आमदनी हुई, जिसका इस्तेमाल वह आतंकी संगठनों को फंड करने में करता है. लेकिन भारत के नज़रिए से यह कार्रवाई एक और उदाहरण है कि अमेरिका अपने हितों के आगे बाकी देशों की अर्थव्यवस्था और कारोबार को रौंदने से भी नहीं हिचकता.
भारत को क्यों है ऐतराज
अमेरिका का तर्क- आतंक फंडिंग रोकना
अमेरिका की तरफ से बयान में कहा गया है कि वह ईरान की पेट्रोलियम मशीनरी को तोड़कर उसकी आय को रोकना चाहता है.
अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने कहा, हम ईरान की नकदी प्रवाह को तोड़ रहे हैं ताकि वह उन आतंकी संगठनों को पैसा न दे सके जो अमेरिका के लिए खतरा हैं. यह बयान स्पष्ट रूप से अमेरिकी राजनीति की उस दिशा को दिखाता है जो ईरान को लगातार दुश्मन के रूप में पेश करती रही है. लेकिन इस दौरान जो निर्दोष कारोबारी और कंपनियां फंसती हैं, वे अक्सर अन्य देशों जैसे भारत, यूएई या सिंगापुर से होती हैं.
भारत के कारोबारी कैसे फंसे
ईरान की ऊर्जा सप्लाई नेटवर्क बेहद जटिल है. अमेरिका के दस्तावेजों में बताया गया है कि ईरानी तेल और LPG की ढुलाई में चीन, यूएई, हांगकांग, सिंगापुर और भारत समेत कई देशों की कंपनियां शामिल थीं. ईरान अक्सर अपने तेल की पहचान छुपाने के लिए शैडो फ्लीट यानी ऐसे जहाजों का इस्तेमाल करता है जो झूठे दस्तावेज़ दिखाते हैं और अलग-अलग देशों के झंडे के तहत चलते हैं. OFAC के मुताबिक, भारत से जुड़े कारोबारी इन जहाजों को तकनीकी, लॉजिस्टिक या वित्तीय सेवाएं देते थे. हालांकि किसी भी भारतीय कंपनी या व्यक्ति पर टेरर फंडिंग का सीधा आरोप नहीं लगाया गया है. फिर भी, उन्हें प्रतिबंध सूची में डाल दिया गया.
अब होगा असर क्या?
अमेरिका के कानून के अनुसार, जो भी व्यक्ति या कंपनी OFAC की ब्लैकलिस्ट में शामिल होती है, उसकी सारी संपत्तियां और लेनदेन अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में फ्रीज कर दिए जाते हैं. यानी कि अब ये भारतीय कंपनियां अमेरिकी डॉलर में लेनदेन नहीं कर पाएंगी, और किसी भी अमेरिकी बैंक या संस्था के साथ उनका व्यापार अवैध माना जाएगा. सिर्फ इतना ही नहीं, जो भी विदेशी कंपनी इनसे कारोबार करेगी, वह भी अमेरिकी निगरानी के दायरे में आ जाएगी. इससे इन भारतीय कारोबारियों का वैश्विक व्यापार काफी प्रभावित होगा.



