You are currently viewing US Sanctions On India: अमेरिका की एक और बदमाशी, ईरान से तेल का व्‍यापार करने वाले भारतीयों और कंपन‍ियों पर लगाया बैन

US Sanctions On India: अमेरिका की एक और बदमाशी, ईरान से तेल का व्‍यापार करने वाले भारतीयों और कंपन‍ियों पर लगाया बैन


वॉशिंगटन से आई एक नई खबर ने भारत-अमेरिका रिश्तों में फिर कड़वाहट घोल दी है. अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने ईरान के ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े कारोबार पर नए प्रतिबंध लगाए हैं. इस बार सीधा निशाना कुछ भारतीय नागरिकों और कंपनियों को बनाया गया है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने ईरान के तेल और गैस कारोबार से जुड़ी डीलिंग में हिस्सा लिया. अमेरिका ने दावा किया कि इन भारतीयों ने ईरान की लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) और पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में भूमिका निभाई. वाशिंगटन का कहना है कि इससे ईरान को अरबों डॉलर की आमदनी हुई, जिसका इस्तेमाल वह आतंकी संगठनों को फंड करने में करता है. लेकिन भारत के नज़रिए से यह कार्रवाई एक और उदाहरण है कि अमेरिका अपने हितों के आगे बाकी देशों की अर्थव्यवस्था और कारोबार को रौंदने से भी नहीं हिचकता.

अमेरिकी ऑफिस ऑफ फॉरेन ऐसेट्स कंट्रोल (OFAC) ने गुरुवार को एक बड़ा ऐलान किया कि वह 50 से ज्यादा व्यक्तियों, कंपनियों और जहाजों पर कार्रवाई कर रहा है जो ईरान से तेल और गैस के निर्यात में शामिल थे. इनमें तीन भारतीय नागरिकों वरुण पूला, सोनिया श्रेष्ठा और अय्यपन राजा के नाम भी हैं. वरुण पूला पर आरोप है कि वह Bertha Shipping Inc. नामक कंपनी के मालिक हैं, जिसने ईरान से चीन तक LPG की बड़ी खेप पहुंचाई. अय्यपन राजा को Evie Lines Inc. का मालिक बताया गया है, जिसने अप्रैल 2025 से अब तक एक मिलियन बैरल ईरानी LPG की ढुलाई की. वहीं, सोनिया श्रेष्ठा की कंपनी Vega Star Ship Management Pvt Ltd” ने कथित तौर पर ईरान से पाकिस्तान तक LPG भेजी. अमेरिका ने इन तीनों को ईरान के ऊर्जा क्षेत्र में “ऑपरेट करने” के आरोप में ब्लैकलिस्ट किया है.

भारत को क्यों है ऐतराज

भारत का रुख साफ है क‍ि नई दिल्ली किसी भी एकतरफा अमेरिकी प्रतिबंध को नहीं मानता. भारत पहले भी कह चुका है कि वह केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को ही मान्यता देता है, किसी एक देश के बनाए घरेलू कानून को नहीं. ईरान के साथ भारत के रिश्ते सिर्फ तेल के नहीं, बल्कि रणनीतिक और सांस्कृतिक भी हैं. भारत ने चाबहार बंदरगाह जैसे बड़े प्रोजेक्ट में ईरान के साथ काम किया है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच सुनिश्चित करता है. भारत के लिए ईरान सिर्फ एक तेल आपूर्तिकर्ता नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक साझेदार है. ऐसे में अमेरिका द्वारा इस तरह की कार्रवाई भारत के हितों पर चोट की तरह है.

अमेरिका का तर्क- आतंक फंडिंग रोकना

अमेरिका की तरफ से बयान में कहा गया है कि वह ईरान की पेट्रोलियम मशीनरी को तोड़कर उसकी आय को रोकना चाहता है.
अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने कहा, हम ईरान की नकदी प्रवाह को तोड़ रहे हैं ताकि वह उन आतंकी संगठनों को पैसा न दे सके जो अमेरिका के लिए खतरा हैं. यह बयान स्पष्ट रूप से अमेरिकी राजनीति की उस दिशा को दिखाता है जो ईरान को लगातार दुश्मन के रूप में पेश करती रही है. लेकिन इस दौरान जो निर्दोष कारोबारी और कंपनियां फंसती हैं, वे अक्सर अन्य देशों जैसे भारत, यूएई या सिंगापुर से होती हैं.

भारत के कारोबारी कैसे फंसे

ईरान की ऊर्जा सप्लाई नेटवर्क बेहद जटिल है. अमेरिका के दस्तावेजों में बताया गया है कि ईरानी तेल और LPG की ढुलाई में चीन, यूएई, हांगकांग, सिंगापुर और भारत समेत कई देशों की कंपनियां शामिल थीं. ईरान अक्सर अपने तेल की पहचान छुपाने के लिए शैडो फ्लीट यानी ऐसे जहाजों का इस्तेमाल करता है जो झूठे दस्तावेज़ दिखाते हैं और अलग-अलग देशों के झंडे के तहत चलते हैं. OFAC के मुताबिक, भारत से जुड़े कारोबारी इन जहाजों को तकनीकी, लॉजिस्टिक या वित्तीय सेवाएं देते थे. हालांकि किसी भी भारतीय कंपनी या व्यक्ति पर टेरर फंड‍िंग का सीधा आरोप नहीं लगाया गया है. फिर भी, उन्हें प्रतिबंध सूची में डाल दिया गया.

अब होगा असर क्या?

अमेरिका के कानून के अनुसार, जो भी व्यक्ति या कंपनी OFAC की ब्लैकलिस्ट में शामिल होती है, उसकी सारी संपत्तियां और लेनदेन अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में फ्रीज कर दिए जाते हैं. यानी कि अब ये भारतीय कंपनियां अमेरिकी डॉलर में लेनदेन नहीं कर पाएंगी, और किसी भी अमेरिकी बैंक या संस्था के साथ उनका व्यापार अवैध माना जाएगा. सिर्फ इतना ही नहीं, जो भी विदेशी कंपनी इनसे कारोबार करेगी, वह भी अमेरिकी निगरानी के दायरे में आ जाएगी. इससे इन भारतीय कारोबारियों का वैश्विक व्यापार काफी प्रभावित होगा.



Source link

Leave a Reply