You are currently viewing एक गोल्ड की कीमत तुम क्या जानो बाबू!

एक गोल्ड की कीमत तुम क्या जानो बाबू!


विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक में महिलाओं की 50 किलो कैटेगरी के फाइनल में पहुंकर भी मेडल जीत ना सकीं. 100 ग्राम वजन ज्यादा होने की वजह से विनेश को अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिसकी वजह से जो सिल्वर मेडल पक्का था वो भी नहीं मिला. इस बीच विनेश के संभावित मेडल को लेकर भारत में कुछ नेताओं ने राजनीति भी शुरू कर दी थी. आखिरकार ना तो विनेश को मेडल मिला और ना ही राजनीति करने वालों के लिए अखाड़ा बचा.

सिल्वर तो पक्का था, गोल्ड का था इंतजार
भारत का एक खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक में देश का परचम लहरा था. एक चैंपियन की तरह खेलते हुए वो गोल्ड से बस एक कदम दूर था. पूरा देश कुश्ती के पहले ओलंपिक गोल्ड की उम्मीद में जश्न की तैयारी कर रहा था. विनेश फोगाट ने महिलाओं के 50 किलोग्राम कैटेगरी में एक ही दिन में तीन ताबड़तोड़ मुकाबले जीतकर फाइनल में पहुंची थीं. फाइनल में पहुंचकर विनेश ने सिल्वर मेडल तो पक्का कर ही लिया था लेकिन इंडिया तो गोल्ड से कम पर मानने को तैयार नहीं दिख रहा था.

गोल्ड की ज्यादा संभावनाएं इसलिए भी थी क्योंकि विनेश ने पहले ही राउंड में जापान की सुसाकी को हराया था. अपने इंटरनेशनल करियर में कभी नहीं हारी थी. सुसाकी के 82-0 के विनिंग रिकॉर्ड पर विनेश ने ही ब्रेक लगाया. सेमीफाइनल मैच में विनेश क्यूबा की लोपेज गुजमान को 5-0 से हराकर अपना दमखम दिखाया था. उनके शानदार खेल को देखते हुए शायद कोई होगा जिसे उनके गोल्ड मेडल के जीतने को लेकर कोई शक होगा.

देश को था गोल्ड का इंतजार
जब पूरा देश गोल्ड मेडल का इंतजार कर रहा था, विनेश गोल्ड जीतने की तैयारी कर रही थीं. उस दौरान देश के अंदर कुछ और भी चल रहा था. कुछ नेताओं ने विनेश के मेडल को हथियार बनाकर राजनीति करने की ठान रखी थी. ये नेता विनेश के गोल्ड मेडल या सिल्वर मेडल मिलने से ज्यादा इस बात से उत्साहित थे कि इसके बहाने उन्हें सरकार को घेरने का मौका मिलेगा.

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक्स पर लिखते हैं कि पेरिस की गूंज दिल्ली तक सुनाई देगी. हालांकि इसके बाद पेरिस से गूंज आई उससे पूरे देश में सन्नाटा छा गया. फाइनल मुकाबले से पहले विनेश का वजन 100 ग्राम ज्यादा आने की वजह से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया. भारत ने एक पक्का मेडल खोया ही साथ ही उन नेताओं का जोश ठंडा पड़ गया जो विनेश के मेडल के दम पर राजनीति खेलने की योजना बना रहे थे. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद विनेश को दिलासा दिया कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है.

कुश्ती का अखाड़ा क्यों बना राजनीति का अखाड़ा?
जहां भारत की एक बेटी की कामयाबी के जश्न की गूंज पूरे देश में एक स्वर में आनी चाहिए वहां उसमें राजनीति की गूंज सुनाई देती है. जिस खिलाड़ी ने कुश्ती के अखाड़े में कई नामचीन खिलाड़ियों को चित कर देश का नाम रौशन किया. उसे फिर से उस विवाद में खींचने की कोशिश हो रही थी जब विनेश ने कुश्ती महासंघ के खिलाफ कुछ पहलवानों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था. खुद विनेश राजनीति के उस अखाड़े से निकलकर कुश्ती के अखाड़े में मन लगा रही थीं. उसका नतीजा भी इतना शानदार रहा कि देश को उस पर गर्व है.

भारत सरकार ने भी विनेश की ओलंपिक तैयारियों को लेकर कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था. विनेश इतिहास रचने के इतने पास पहुंचकर भी निराश होकर, खाली हाथ पेरिस से लौटेंगी. देश के नेता ये क्यों नहीं समझते कि खिलाड़ियों के हाथ में मेडल होना चाहिए, बैनर पोस्टर नहीं. कुश्ती महासंघ को लेकर जो भी विवाद हुआ उसमें जाने के बजाय विनेश की कामयाबी की बातें होती तो ज्यादा अच्छा होता. जिस कुश्ती में भारत को सबसे ज्यादा मेडल की उम्मीदें होती थी पेरिस में उसी ने बहुत निराश किया. इसके पीछे कुश्ती महासंघ को लेकर जो राजनीति हुई उसकी भूमिका भी कोई कम नहीं.

कुश्ती महासंघ की आपसी राजनीति में कुछ खिलाड़ी शामिल तो जरूर हुए लेकिन उससे ना तो भारतीय कुश्ती को फायदा हुआ और ना ही खिलाड़ियों के हाथ कुछ आया. पेरिस ओलंपिक से खाली हाथ लौटते पहलवान नेताओं के मंसूबों पर पानी फेरकर ही भारतीय कुश्ती का भविष्य संवार सकते है.

Tags: 2024 paris olympics, Vinesh phogat



Source link

Leave a Reply