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भारत में म्युनिसिपल बॉन्ड्स: इतिहास, प्रकार और निवेशकों के लिए लाभ


Agency:News18Hindi

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म्युनिसिपल बॉन्ड्स स्थानीय सरकारों को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन जुटाने में मदद करते हैं. निवेशकों को कर-मुक्त ब्याज मिलता है. भारत में पहला बॉन्ड 1997 में बेंगलुरू ने जारी किया. हाल ही में प्रयागराज, वा…और पढ़ें

क्या होते हैं म्युनिसिपल बॉन्ड्स, आम आदमी को क्या होता है इससे फायदा

UP के 3 जिलों ने हाल ही में म्युनिसिपल बॉन्ड जारी किए थे.

हाइलाइट्स

  • म्युनिसिपल बॉन्ड्स से स्थानीय सरकारें धन जुटाती हैं.
  • भारत में पहला म्युनिसिपल बॉन्ड 1997 में जारी हुआ.
  • निवेशकों को म्युनिसिपल बॉन्ड्स पर कर-मुक्त ब्याज मिलता है.

नई दिल्ली. भारत में म्युनिसिपल बॉन्ड्स का इतिहास 1997 से शुरू होता है, जब बेंगलुरू नगर निगम ने पहला म्युनिसिपल बॉन्ड जारी किया. इसके बाद, अहमदाबाद और नासिक जैसे शहरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया. म्युनिसिपल बॉन्ड्स का मुख्य उद्देश्य स्थानीय सरकारों को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना है. हाल ही में, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, वाराणसी और आगरा नगर निगम ने 150 करोड़ रुपये बॉन्ड जारी किए.

म्युनिसिपल बॉन्ड्स स्थानीय सरकारों को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आवश्यक धन जुटाने में मदद करते हैं. इनका उपयोग स्कूलों, अस्पतालों, सड़कें, और जल आपूर्ति जैसी परियोजनाओं के लिए किया जाता है. निवेशक इन बॉन्ड्स से ब्याज (कूपन) के रूप में नियमित आय प्राप्त करते हैं, जो आमतौर पर कर-मुक्त होती है.

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प्रकार
भारत में म्युनिसिपल बॉन्ड्स मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित होते हैं:
सामान्य दायित्व बॉन्ड (General Obligation Bonds): ये स्थानीय सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं और इन्हें सामान्य कर राजस्व से चुकाया जाता है.
राजस्व बॉन्ड (Revenue Bonds): ये विशेष परियोजनाओं से उत्पन्न राजस्व पर निर्भर करते हैं.

निवेशकों के लिए लाभ
कर-मुक्त ब्याज: अधिकांश म्युनिसिपल बॉन्ड्स पर मिलने वाला ब्याज टैक्स से मुक्त होता है.
कम जोखिम: इनका डिफॉल्ट जोखिम कॉर्पोरेट बॉन्ड्स की तुलना में कम होता है.
पारदर्शिता: इनकी रेटिंग CRISIL जैसी एजेंसियों द्वारा की जाती है, जिससे निवेशकों को निर्णय लेने में मदद मिलती है.

चुनौतियां
हालांकि, म्युनिसिपल बॉन्ड्स कई लाभ प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं
निवेशकों का भरोसा: शहरी एजेंसियों की कमजोर वित्तीय स्थिति और प्रबंधन की कमी ने निवेशकों के विश्वास को प्रभावित किया है.
प्रामाणिक वित्तीय डेटा की अनुपलब्धता: स्थानीय निकायों पर संदेह होने से निवेशकों की रुचि कम हो गई है.

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