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वॉरेन बफेट को दुनिया का सबसे अमीर निवेशक माना जाता है. मगर उन्होंने कभी गोल्ड में निवेश नहीं किया. इसकी वो एक बड़ी वजह भी बताते हैं.
वॉरेन बफेट की अनोखी निवेश फिलॉसफी सोना नहीं, बिजनेस सही.(Image:AI) सोना क्यों नहीं खरीदते बफेट?
बफेट का कहना है कि सोने का इस्तेमाल गहनों और थोड़े-बहुत औद्योगिक काम में होता है, लेकिन निवेश के तौर पर यह लंबे समय में फार्म या बिजनेस जैसे उत्पादक एसेट्स के मुकाबले कमजोर है. उनका मानना है कि अगर आप एक औंस सोना खरीदकर सालों तक रखें, तो सालों बाद भी आपके पास उतना ही सोना रहेगा, वह बढ़ेगा या नया कुछ पैदा नहीं करेगा. 2011 में उन्होंने शेयरहोल्डर्स से कहा था कि सोने के दो बड़े नुकसान हैं- यह ज्यादा उपयोगी नहीं है और न ही कुछ नया पैदा करता है. इसी सोच के चलते बफेट ने गोल्ड में कभी सीधे निवेश नहीं किया. हां, उन्होंने एक बार गोल्ड माइनिंग कंपनी Barrick Gold में पैसा लगाया था, लेकिन सिर्फ छह महीने में उससे बाहर निकल गए.
2011 में सोने की कीमत 1,750 डॉलर थी, जो आज करीब 3,350 डॉलर हो गई है. यानी 14 साल में दोगुनी. सुनने में बड़ा फायदा लगता है, लेकिन इसका सालाना रिटर्न (CAGR) सिर्फ 5 फीसदी है, जबकि अमेरिकी शेयर बाजार ने इसी दौरान 14 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया. इस हिसाब से बफेट की सोच सही साबित होती है. 2011 से 2020 तक सोने की कीमत गिरी और फिर पुराने स्तर पर लौटी. असली उछाल 2020 के बाद आया, जब 5 साल में सोना 90 फीसदी चढ़ा.
सोने की कीमत क्यों बढ़ती है?
बफेट के मुताबिक, सोने की कीमत डर से बढ़ती है- जैसे मुद्रा के गिरने का डर, आर्थिक अनिश्चितता या राजनीतिक तनाव. हाल के सालों में अमेरिकी डॉलर की कमजोरी, बढ़ते कर्ज और ब्याज दरों के बोझ, क्रेडिट रेटिंग में गिरावट और ट्रंप के टैरिफ युद्ध ने निवेशकों को सोने की तरफ खींचा है. इस समय अमेरिका का कर्ज 36.93 खरब डॉलर है और सिर्फ 2025 में ही 1.02 खरब डॉलर ब्याज चुका चुका है. डॉलर इंडेक्स 2025 में अब तक 4 फीसदी गिरा है. डॉलर में सोने का व्यापार होता है, इसलिए डॉलर कमजोर होने पर सोने की कीमत बढ़ जाती है. बफेट का मानना है कि लंबे समय में बिज़नेस और प्रोडक्टिव एसेट्स सोने से ज्यादा रिटर्न देते हैं. उनकी फिलॉसफी है कि ‘जब लोग लालची हों तो डरें, और जब लोग डरें तो लालची बनें.’ गोल्ड के मामले में भी वे इसी सिद्धांत पर चलते हैं और डर में भी सोना खरीदने की जल्दी नहीं करते.
Rakesh Singh is a chief sub editor with 14 years of experience in media and publication. International affairs, Politics and agriculture are area of Interest. Many articles written by Rakesh Singh published in …और पढ़ें
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