पिछले कुछ दिनों से इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल E-20 को लेकर काफी हो-हल्ला है. लोग कह रहे हैं कि इस पैट्रोल के इस्तेमाल से उनकी गाड़ी की माइलेज कम हो गई है. कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि ई-20 पेट्रोल से पुराने वाहनों के इंजन पर बुरा असर पड़ रहा है. इसी बीच लोगों के बड़े सवालों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने खुद आगे आकर जवाब दिया है. सरकार ने 4 अगस्त 2025 को ई-20 के उपयोग से वाहनों की माइलेज और जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में उठाए गए सवालों का विस्तृत जवाब दिया. बताया कि कैसे यह कदम भारत के पर्यावरण से जुड़े लक्ष्यों, विशेष रूप से 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कितना महत्वपूर्ण है. तो चलिए सभी जरूरी प्रश्न और उनके सरकार द्वारा दिए गए उत्तर जानते हैं.
1: पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण का मकसद क्या है?
पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने का सबसे बड़ा मकसद यह है कि हम गाड़ियों से निकलने वाले धुएं को कम करें, कच्चे तेल पर विदेशों पर निर्भरता घटाएं और गांव–किसान की जेब में सीधा पैसा पहुंचे. भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य लिया है, और सरकार इथेनॉल व प्राकृतिक गैस को स्वच्छ ईंधन मानती है. पेट्रोल में 20% तक इथेनॉल मिलाने से वैसा ही काम होता है, जो रोजमर्रा के बजट में थोड़ा-थोड़ा बचत करने से होता है. धीरे-धीरे बड़ा असर दिखता है. हवा साफ़ होती है, आयात घटता है और किसानों की आमदनी बढ़ती है.
2: E-20 पेट्रोल के पर्यावरणीय लाभ क्या हैं?
पर्यावरण के लिहाज से E-20 का मतलब है कम ग्रीनहाउस गैसें और ज़्यादा साफ ईंधन जलने की प्रक्रिया, जिसे की कंबशन (Combustion) कहा जाता है. फसल उगाने से लेकर ईंधन जलने तक के हिसाब से नीति आयोग का अध्ययन बताया है कि गन्ने से बने इथेनॉल की ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता पेट्रोल से लगभग 65 फीसदी कम और मक्का-आधारित इथेनॉल की लगभग 50 प्रतिशत कम होती है. मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि E-20, E-10 की तुलना में तक़रीबन 30% कम “कार्बन” उत्सर्जन देता है. यही नहीं, इथेनॉल के मिलने से पेट्रोल का ऑक्टेन स्तर बढ़ता है, कंबशन बेहतर होता है और हानिकारक गैसें घटती हैं.
3: इथेनॉल मिश्रण से किसानों को कैसे लाभ होता है?
2014-15 से 2024-25 (जुलाई 2025 तक) के बीच पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने से विदेशी मुद्रा में कुल मिलाकर 1.44 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की बचत और कच्चे तेल के लाखों टन की जगह घरेलू इथेनॉल का इस्तेमाल हुआ. चल रहे इथेनॉल ईयर में 20% मिश्रण के स्तर पर सिर्फ इसी साल में किसानों को लगभग 40,000 करोड़ रुपये का भुगतान और करीब 43,000 करोड़ रुपये की फ़ॉरेक्स बचत का अनुमान है. जो पैसा पहले क्रूड ऑयल आयात में जाता था, वही अब गन्ना–मक्का उगाने वाले “अन्नदाता” को “ऊर्जादाता” बनाकर उन्हें दिया जा रहा है.
4: क्या E-20 से वाहनों की माइलेज और परफॉरमेंस पर असर पड़ता है?
सरकार और ऑटो इंडस्ट्री के परीक्षणों के मुताबिक, E-10 के लिए बने अधिकांश पुराने वाहनों में माइलेज में “मामूली” कमी रहती है, और जो वाहन E-20 के लिए ट्यून या उपयुक्त हैं, उनमें माइलेज में गिरावट का सवाल ही नहीं उठता. वैसे अगर देखा जाए तो टायर में हवा कम होने पर, एयर फ़िल्टर गंदा होने पर या तेज ब्रेक–एक्सेलरेशन होने पर भी गाड़ी का माइलेज घट जाता है. E-20 का ऑक्टेन करीब 108.5 बताया गया है, जिससे नॉकिंग घटती है. इससे पिक-अप और स्मूदनेस बेहतर होती है.
5: क्या वाहन निर्माताओं ने E-20 के लिए ट्यून किया गया है?
सरकार ने काफी पहले से इसकी तैयारी की थी. वाहन निर्माता भी इस बदलाव के लिए वर्षों से तैयारी कर रहे हैं. कई कंपनियों के मॉडल 2009 से ही E-20 के अनुकूल बने हैं, ताकि ईंधन में इथेनॉल की मिलावट बढ़ने पर भी इंजन–फ़्यूल सिस्टम सही ढंग से काम करे. अगर आपका वाहन पुराना है तो अधिकतम इतना करना पड़ सकता है कि फ़्यूल लाइन में लगे कुछ रबर पार्ट्स या गैसकेट्स समय से पहले बदल दिए जाएं. यह काम नियमित सर्विसिंग में कम खर्च में हो जाता है.
6: क्या E-20 पेट्रोल सस्ता होना चाहिए?
2020-21 में हालात ऐसे थे कि इथेनॉल पेट्रोल से सस्ता पड़ता था. पर समय के साथ इथेनॉल की कीमतें बढ़ी हैं. 31 जुलाई 2025 तक OMCs का औसत इथेनॉल प्रोक्योरमेंट करीब 71.32 रुपये प्रति लीटर (ढुलाई व GST सहित) है, जो आज के परिदृश्य में रिफाइंड पेट्रोल की लागत से ऊपर है. फिर भी तेल कंपनियां ब्लेंडिंग प्रोग्राम से पीछे नहीं हटीं, क्योंकि इससे एनर्जी सिक्योरिटी मिलती है, किसानों की आय टिकाऊ बनती है और वातावरण को लाभ होता है.
7: क्या E-20 से वाहनों का बीमा प्रभावित होता है?
बीमा पर असर वाली अफवाहें बेबुनियाद हैं. पेट्रोलियम मंत्रालय ने साफ कहा है कि E-20 का उपयोग करने से वाहन बीमा की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता. सोशल मीडिया पर कुछ भ्रामक स्क्रीनशॉट्स चल रहे हैं, जिनके बारे में सच कंपनियों ने खुद जारी किया है. इसलिए अगर आपकी पॉलिसी वैध है और वाहन नियमित सर्विस हो रहा है, तो केवल E-20 भरवाने से बीमा में कोई बदलाव नहीं होता.
8: क्या भारत E-20 से आगे बढ़ेगा?
अभी सरकार का रोडमैप 31 अक्तूबर 2026 तक E-20 पर केंद्रित है और उसके आगे बढ़ने का फैसला विस्तृत अध्ययन और परामर्श के बाद ही होगा. इथेनॉल सप्लाई ईयर 2024-25 में 31 जुलाई 2025 तक औसत मिश्रण 19.05 फीसदी रहा और जुलाई महीने में 19.93% तक पहुंचा. फिलहाल इसके टेक्नोलॉजिकल और इकॉनमिकल आकलन चल रहे हैं.
9: ब्राजील जैसे देशों का अनुभव क्या कहता है?
ब्राजील का अनुभव अक्सर उदाहरण के तौर पर दिया जाता है. वहां 2015 से साधारण पेट्रोल में 27 प्रतिशत इथेनॉल मिलाना अनिवार्य रहा है और 2025 में सरकार ने इसे 30% तक बढ़ाने का फैसला किया. व्यापक परीक्षणों के बाद ऐसा किया गया. दिलचस्प बात यह है कि वही ऑटोमेकर टोयोटा, होंडा, ह्युंडई आदि वहां भी गाड़ियां बनाते हैं और हाई ब्लेंड वाले ईंधन पर लंबे समय से वाहन चल रहे हैं.
10: पुराने वाहनों के लिए क्या समाधान हैं?
अगर किसी कार में रबर के कुछ पार्ट्स (जैसे फ़्यूल होज़, ओ-रिंग, गैसकेट) E-20 से तेजी से घिसते दिखें तो उन्हें नई E-20 ट्यून्ड पार्ट्स से बदल दें. यह काम अधिकतर सर्विस सेंटर, सर्विसिंग के टाइम कम लागत पर कर देते हैं और आमतौर पर वाहन में एक बार से ज़्यादा की जरूरत नहीं होती. इस बीच ईंधन की गुणवत्ता और परीक्षण के लिए BIS और ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स मौजूद हैं, ताकि उपभोक्ता को भरोसेमंद ईंधन मिले.
11: क्या सरकार उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रख रही है?
सरकार ने कहा है कि स्वच्छ और टिकाऊ ईंधन की ओर बढ़ते हुए ग्राहक के हित सबसे ऊपर हैं. बीमा, माइलेज और परफॉर्मेंस को लेकर भ्रम दूर करने के लिए ऑफिशियल क्लैरिफिकेशन जारी किए गए हैं, मानक तय हैं, और ऑटोमोबाइल सर्विस स्टेशनों का नेटवर्क मदद के लिए उपलब्ध है. सरल शब्दों में, अगर आपको लगे कि आपकी गाड़ी को थोड़ी ट्यूनिंग या कोई पार्ट बदलने की जरूरत है, तो अधिकृत वर्कशॉप से मिलकर आसानी से समाधान मिल जाता है.



