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चीन में खस्ताहाल यूरोपियन कार कंपनियां, खुद के देश में भी फैक्ट्री बंद करने की आई नौबत, मुनाफा 64% गिरा


नई दिल्ली. एक समय था जब चीन में बने सामानों को खराब गुणवत्ता के कारण काफी बदनामी झेलनी पड़ती थी. फिर चीन में टेक्नोलाॅजी की क्रांति आई और देखते ही देखते केवल 10 सालों के भीतर चीन ने दुनिया भर के स्मार्टफोन मार्केट में कब्जा जमा लिया. आज स्मार्टफोन से लेकर ऑटोमोबाइल तक कोई भी ऐसी इंडस्ट्री नहीं है जिसमें चीन का दबदबा न दिखता हो. लेकिन चीन में तकनीकी विकास की आक्रामक रफ्तार और रणनीति आज दुनियाभर की कई दिग्गज कार कंपनियों के लिए मुसीबत का कारण बन गई है.

ऑटोमोबाइल के सबसे बड़े बाजार चीन ने दुनियाभर की ऑटो इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया है. यूरोप की फॉक्सवैगन, मर्सिडीज-बेंज, एस्टन मार्टिन, बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियों को अपनी पेट्रोल और ईवी कारें चीन में बेचने में पसीना आ रहा है. वहीं चीन की सस्ती कारों की पैठ इतनी बढ़ती जा रही है कि फॉक्सवैगन जैसी बड़ी ऑटोमोबाइक ग्रुप को जर्मनी में अपने प्लांट्स बंद करने पड़ रहे हैं. सस्ती ईवी कारों की पैठ दुनियाभर में बढ़ाता जा रहा है.

चीन में कार नहीं बेच पा रही फाॅक्सवैगन
चीन में यूरोपीय कार कंपनियां दम तोड़ रही हैं. चीनी कंपनियों की सस्ती इलेक्ट्रिक कारों के आगे यूरोपीय कंपनियों की एक नहीं चल रही है. हालत ये है कि लगभग चार दशक से चीन में कारोबार कर रही जर्मन कंपनी अब ध्वस्त होने के कगार पर है. कंपनी की 30% से ज्यादा आय चीन से होती है, लेकिन इस साल के आंकड़ों के मुताबिक बिक्री 10% कम हुई है, जबकि कंपनी का मुनाफा 64% तक गिर गया. इससे एक ओर कंपनी को चीन में प्रोडक्शन घटाना पड़ा, वहीं जर्मनी में 3 कारखाने बंद करने जा रही है.

चीन की ऑटो इंडस्ट्री में कैसे आया बड़ा बदलाव
ऑटो इंडस्ट्री में आए इस बदलाव का कारण चीन की आक्रामक विस्तार नीति को बताया जाता है. दरअसल, चीन के सरकारी बैंक और अन्य सरकारी उपक्रम स्थानीय ऑटो कंपनियों को भारी सब्सिडी दे रहे हैं. इससे कंपनियों को लागत कम करने में मदद मिल रही है. सब्सिडी के चलते चीनी कारों की लागत 30% कम है, जबकि इलेक्ट्रिक कारें 50% तक कम कीमत पर उतारी जा रही हैं.

चीन में ऑटोमोबाइल निर्माताओं के संगठन सीएएएम के अनुसार, बीते साल 3 करोड़ से अधिक कारें बनीं, जिनमें 52 लाख निर्यात हुईं. हालांकि, चीन का निर्यात उस प्रारंभिक स्थिति में है, जहां कोरियाई कंपनी ह्युंडई 70 के दशक में थी.

50% से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें चीन में बिक रहीं
चीन में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में जबरदस्त इजाफा हुआ है. इसका कारण चीनी निर्माताओं की कारों का सस्ता होना है. चीन ने वर्ष 2000 में ही इलेक्ट्रिक कारों पर शिफ्ट होने की रणनीति तैयार कर ली थी. चीनी कंपनियों को अहसास हो गया था कि वो पेट्रोल-डीजल कारों में यूरोपियन, अमेरिकी, कोरियाई और जर्मन कंपनियों को मात नहीं दे पाएंगे. चीन में ऑटो इंजीनियर से मंत्री बने वान गैंग ने 2009 से ईवी कंपनियों को सब्सिडी देने की योजना शुरू की. 2022 तक 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक मदद दी गई. आज दुनिया की 50% से अधिक ईवी चीन में बिकती हैं.

चीन में पेट्रोल से सस्ती इलेक्ट्रिक कार
जैटो डायनेमिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक ईवी को लेकर चीन की आक्रामक नीति का असर यह है कि पेट्रोल-डीजल गाड़ियों की तुलना में इलेक्ट्रिक कार की कीमतें 19% तक कम हैं. वहां कार बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 20% पहुंच गई है. यूरोप में कार बनाने वाले 50 मुख्य ब्रांड है, अमेरिका-जापान में 14-14 ब्रांड हैं. जबकि चीन में 140 ब्रांड हैं. साथ ही, पश्चिमी कार निर्माताओं की तुलना में इनकी प्रोडक्शन क्षमता 30% तेज है.

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