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The runner running on the farm trail talks to the wind, the race seems to be ripping through the air like the Bullet Vande Bharat train


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बिहार के ऐसे कई युवा हैं, जिनके पास सुविधाएं नहीं थी, लेकिन उन्होंने खुद की मेहनत से बिहार को मेडल दिलाया है. इन्हीं में से एक हैं धावक सिसवन निवासी प्रभु महतो के पुत्र राजन महतो, आइए उनकी कहानी के बारे में जान…और पढ़ें

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पिता करते हैं मजदूरी, पुत्र को बनाना चाहते हैं खिलाड़ी

हाइलाइट्स

  • राजन महतो ने खेत में दौड़ की तैयारी कर कई बार बिहार को मेडल दिलाया.
  • संसाधनों की कमी के बावजूद, राजन का ओलंपिक खेलने का लक्ष्य है.
  • स्थानीय लोग राजन की तुलना बुलेट ट्रेन और वंदे भारत से करते हैं.

छपरा:- सफलता की कहानी लिखना इतना आसान नहीं होता है और उसके लिए कठिन मेहनत करना पड़ता है. आज लोकल 18 आपको एक ऐसे धावक के बारे में बताने जा रहा है, जो खेत के पगडंडी पर दौड़ की तैयारी करके कई बार बिहार को मेडल दिला चुके हैं. नेशनल में कई बार अच्छे-अच्छे धावक को पीछा छोड़ने हुए बिहार का झंडा गाड़ने का काम किया है. सबसे खास बात यह है कि संसाधन की काफी ज्यादा इस धावक के पास कमी है. इसके बावजूद भी इन्होंने अपने बल पर कई बार बिहार को मेडल दिलाने का काम किया है.

खेत में दौड़ लगाकर करते हैं अभ्यास
शुद्ध खाने के लिए इनके पास व्यवस्था नहीं है और ना ही प्रशिक्षण देने वाला कोई है. इसके बावजूद भी खेत में दौड़ लगाकर इन्होंने अपना जो मुकाम हासिल किया है, वह काबिले तारीफ है. हम बात कर रहे हैं सिसवन निवासी प्रभु महतो के पुत्र राजन महतो की, जिन्होंने खेत खलियान में एथलेटिक्स का तैयारी की है. इन्हें प्रशिक्षण देने वाला भी कोई नहीं है. इसके बावजूद भी बिहार का झंडा नेशनल स्तर पर कई बार गाड़ चुके हैं. स्थानीय लोग इन्हें बुलेट ट्रेन और वंदे भारत से तुलना करते हुए कहते हैं कि ट्रेन की तरह हवा को चीरते हुए काफी तेजी से दौड़ते हैं. अगर इन्हें सभी संसाधन मिले, तो लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.

सही से नहीं मिल पा रहा खुराक
Local 18 से रंजन महतो ने बताया कि मुझे ओलंपिक खेलने का लक्ष्य है, जिसको लेकर प्रतिदिन चार घंटा तैयारी करता हूं. सुबह 2 घंटा और शाम 2 घंटा दौड़ लगाता हूं. प्रशिक्षण देने वाले भी कोई नहीं है. मैं खुद से अपनी तैयारी करता हूं और ना ही दौड़ने के लिए अच्छा फील्ड है. यही नहीं, उन्होंने ये भी बताया कि मेरे पिताजी एक किसान हैं और मुझे दौड़ लगाने के लिए जितना खुराक चाहिए, उतना नहीं मिल पाता है. पैसे की काफी कमी है.

एक खिलाड़ी पर महीने के लगभग 20000 रुपए खर्च हो जाता है, तब जाकर एक अच्छा खिलाड़ी बन सकते हैं. अगर कहीं से मुझे सभी व्यवस्था मिल जाए, तो मैं ओलंपिक तक पहुंचने में देर नहीं लगाऊंगा. पिता के साथ खेत में काम भी करना पड़ता है, और पढ़ाई के साथ-साथ दौड़ की भी तैयारी करता हूं.

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