कांवड़ यात्रा 2025 की शुरुआत 11 जुलाई से होगी और ये यात्रा सावन शिवरात्रि यानी 23 जुलाई तक चलेगी. हालांकि, कई राज्यों में यह पूरे सावन महीने तक जारी रहती है. यह परंपरा हजारों साल पुरानी मानी जाती है, जिसे भगवान परशुराम ने शुरू किया था. मान्यता है कि इस यात्रा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. लेकिन अगर कुछ जरूरी नियमों को नजरअंदाज किया जाए, तो पूरी यात्रा व्यर्थ भी हो सकती है.
1. कांवड़ को ज़मीन पर रखने की गलती न करें
गंगाजल से भरी कांवड़ बेहद पवित्र मानी जाती है. इसे कभी भी ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए. अगर रुकना हो, तो इसे किसी साफ लकड़ी के स्टैंड पर रखें या पेड़ पर टांग दें. अगर गलती से कांवड़ ज़मीन को छू जाए, तो उसे अपवित्र मानकर नया जल भरना पड़ता है.
इस यात्रा की शुरुआत से पहले खुद को अंदर से भी साफ करना जरूरी है. बुरे विचार, गुस्सा या जलन जैसे भाव आपके भीतर नहीं होने चाहिए.
3. मांस-मदिरा से पूरी तरह दूरी बनाएं
सावन और खासकर कांवड़ यात्रा के दौरान मांस, शराब, सिगरेट, तंबाकू और लहसुन-प्याज जैसी चीज़ों का सेवन वर्जित है. यह शिवभक्ति के खिलाफ माना जाता है.
हर रोज़ नहाएं और साफ कपड़े पहनें. शौच या किसी भी अपवित्र कार्य के बाद बिना नहाए कांवड़ को न छुएं.
5. चमड़े की वस्तुएं न करें इस्तेमाल
चमड़े से बनी बेल्ट, जूते या पर्स जैसी चीज़ों से दूरी बनाए रखें. इन्हें अपवित्र माना जाता है और यह कांवड़ यात्रा की भावना के खिलाफ हैं.
ज्यादातर कांवड़िए भगवा रंग के कपड़े पहनते हैं. यह त्याग, सेवा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. इससे मन और शरीर दोनों शिवभक्ति में लगते हैं.
7. यात्रा में सिर्फ शिव नाम का ही जाप करें
कांवड़ यात्रा के दौरान “हर-हर महादेव”, “बम-बम भोले” जैसे मंत्रों का जाप करते रहें. इससे ऊर्जा बनी रहती है और मन स्थिर रहता है.
डाक कांवड़ में गंगाजल भरने के बाद बिना रुके सीधा शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है. इसे सबसे कठिन लेकिन पुण्यदायक रूप माना जाता है.
9. पर्यावरण का रखें पूरा ध्यान
यात्रा के दौरान प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें, कचरा इधर-उधर न फेंकें. पुन: उपयोग वाली बोतलें और थैले इस्तेमाल करें. याद रखें, शिव का दूसरा नाम ही प्रकृति है.
तो क्यों है यह यात्रा इतनी खास?
कहते हैं, जब समुद्र मंथन हुआ था, तब निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था. इसी कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा गया. गंगाजल चढ़ाने से शिव के गले को शांति मिलती है और भक्तों को उनका आशीर्वाद. यही वजह है कि यह यात्रा सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान शिव के प्रति हमारी आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक बन गई है.



