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Janmashtami 2025: समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन द्वारका की जन्माष्टमी और समुद्र में दीपदान की यह परंपरा आज भी उतनी ही भव्य है. देश-विदेश से हजारों लोग इस दिन यहां आते हैं, मंदिर की घंटियां, भजनों की गूं…और पढ़ें
द्वारकाधीश मंदिर कथाJanmashtami 2025: कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में जितनी लीलाएं और चमत्कार हुए, उतनी ही कहानियां द्वारका की गलियों में आज भी सांस लेती हैं. गुजरात के पवित्र शहर द्वारका में जन्माष्टमी का त्योहार सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और अद्भुत विश्वास का प्रतीक है. यहां एक ऐसा किस्सा है जिसे सुनकर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कहते हैं कई साल पहले, जन्माष्टमी की रात, जब मंदिर में भगवान का जन्मोत्सव चल रहा था, तभी समुद्र का रूप भयानक हो गया. लहरें इतनी तेज थीं कि लोगों को अपनी जान बचाने के लिए मंदिरों में शरण लेनी पड़ी, लेकिन जो आगे हुआ, उसने इस घटना को इतिहास का हिस्सा बना दिया. आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य रवि पराशर से.
चमत्कार की शुरुआत
उस रात द्वारका में आसमान काला हो चुका था, हवाएं तेज़ी से चल रही थीं और समुद्र की लहरें उफान पर थीं. लोग सोच रहे थे कि शायद यह रात शहर के लिए आखिरी साबित होगी. ठीक आधी रात को, द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का शंख बजा. तभी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने आदेश दिया हो, समुद्र की लहरें शांत हो गईं और पीछे हट गईं.
लोगों की श्रद्धा और विश्वास
इस दृश्य को देखने वाले लोग समझ गए कि यह भगवान का ही चमत्कार है. जहां कुछ पल पहले विनाश का डर था, वहीं अब शांति और भक्ति का माहौल बन गया। उस रात के बाद से, द्वारका के लोगों ने तय किया कि वे हर जन्माष्टमी पर समुद्र के किनारे दीपदान करेंगे, ताकि इस चमत्कार की याद हमेशा जिंदा रहे.
इस दृश्य को देखने वाले लोग समझ गए कि यह भगवान का ही चमत्कार है. जहां कुछ पल पहले विनाश का डर था, वहीं अब शांति और भक्ति का माहौल बन गया। उस रात के बाद से, द्वारका के लोगों ने तय किया कि वे हर जन्माष्टमी पर समुद्र के किनारे दीपदान करेंगे, ताकि इस चमत्कार की याद हमेशा जिंदा रहे.
दीपदान की परंपरा
जन्माष्टमी की रात, हजारों श्रद्धालु समुद्र के किनारे इकट्ठा होते हैं. छोटे-छोटे दीये जलाकर समुद्र की लहरों में छोड़ दिए जाते हैं. दूर तक तैरते हुए ये दीपक ऐसा नज़ारा बनाते हैं, जैसे समुद्र के आंचल में सितारे उतर आए हों. यह न सिर्फ भगवान को धन्यवाद देने का तरीका है, बल्कि एक वादा भी है-कि श्रद्धा और विश्वास से बड़ा कोई तूफान नहीं.
जन्माष्टमी की रात, हजारों श्रद्धालु समुद्र के किनारे इकट्ठा होते हैं. छोटे-छोटे दीये जलाकर समुद्र की लहरों में छोड़ दिए जाते हैं. दूर तक तैरते हुए ये दीपक ऐसा नज़ारा बनाते हैं, जैसे समुद्र के आंचल में सितारे उतर आए हों. यह न सिर्फ भगवान को धन्यवाद देने का तरीका है, बल्कि एक वादा भी है-कि श्रद्धा और विश्वास से बड़ा कोई तूफान नहीं.

आध्यात्मिक महत्व
दीपदान का मतलब है अंधकार को दूर करके प्रकाश फैलाना. द्वारका में यह सिर्फ धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि जीवन का संदेश है-मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी हो, आस्था हमें संभाल लेती है. यहां आने वाले हर भक्त के लिए यह अनुभव भावनाओं और ऊर्जा का अनोखा मेल होता है.
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