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म्यूचुअल फंड: नए निवेशकों के लिए आसान गाइड, NAV से लेकर स्कीम तक- समझें पूरी ABCD


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अगर आप निवेश की दुनिया में नए हैं तो म्यूचुअल फंड आपके लिए एक आसान और सुरक्षित विकल्प हो सकता है. इसमें कई निवेशकों का पैसा मिलकर अलग-अलग जगह लगाया जाता है, जिससे जोखिम कम और रिटर्न की संभावना बेहतर होती है.

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नई दिल्ली. म्यूचुअल फंड एक ऐसा जरिया है, जिसमें कई निवेशकों का पैसा इकट्ठा कर विभिन्न शेयरों और सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है. इसके बदले निवेशकों को यूनिट्स मिलती हैं और मुनाफा या घाटा उसी अनुपात में बांटा जाता है. इस प्रक्रिया को डाइवर्सिफिकेशन कहते हैं, क्योंकि निवेश अलग-अलग सेक्टर्स में फैलाया जाता है, जिससे जोखिम कम हो जाता है. म्यूचुअल फंड लॉन्च करने से पहले हर स्कीम को SEBI में रजिस्टर कराना जरूरी होता है.

कैसे बनता है म्यूचुअल फंड?
म्यूचुअल फंड एक ट्रस्ट के रूप में बनाया जाता है, जिसमें चार अहम हिस्से होते हैं- स्पॉन्सर, ट्रस्टी, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) और कस्टोडियन. स्पॉन्सर इसे प्रमोट करता है, ट्रस्टी निवेशकों के हितों की रक्षा करते हैं, जबकि AMC निवेश का प्रबंधन करती है. कस्टोडियन स्कीम की सिक्योरिटीज़ की सुरक्षा करता है. नियम के अनुसार, AMC के 50 फीसदी डायरेक्टर्स और ट्रस्टी बोर्ड के दो-तिहाई सदस्य स्वतंत्र (Independent) होने चाहिए.

NAV क्या है और क्यों जरूरी है?
म्यूचुअल फंड की किसी स्कीम का प्रदर्शन उसकी नेट एसेट वैल्यू (NAV) से मापा जाता है. यह उस स्कीम के पास मौजूद कुल सिक्योरिटीज के मार्केट वैल्यू को जारी की गई कुल यूनिट्स से भाग देकर निकाला जाता है. चूंकि सिक्योरिटीज का मूल्य रोज बदलता है, इसलिए NAV भी रोजाना या हफ्तेवार बदलता रहता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी स्कीम की कुल सिक्योरिटीज़ का मूल्य 200 लाख रुपये है और 10 लाख यूनिट्स जारी की गई हैं, तो एक यूनिट की NAV 20 रुपये होगी.

म्यूचुअल फंड की स्कीमें
म्यूचुअल फंड मुख्य रूप से दो तरह की होती हैं-

ओपन-एंडेड स्कीम: इसमें निवेशक कभी भी यूनिट खरीद या बेच सकते हैं. इसका कोई निश्चित मैच्योरिटी पीरियड नहीं होता और इसमें सबसे बड़ी सुविधा होती है लिक्विडिटी.

क्लोज-एंडेड स्कीम: इसकी अवधि तय होती है, जैसे 5–7 साल. इसे केवल लॉन्च के समय खरीदा जा सकता है और बाद में स्टॉक एक्सचेंज पर बेचा जा सकता है.
इसके अलावा, निवेश उद्देश्य के आधार पर म्यूचुअल फंड की स्कीमें ग्रोथ, इनकम और बैलेंस्ड कैटेगरी में भी आती हैं.

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Rakesh Singh

Rakesh Singh is a chief sub editor with 14 years of experience in media and publication. International affairs, Politics and agriculture are area of Interest. Many articles written by Rakesh Singh published in …और पढ़ें

Rakesh Singh is a chief sub editor with 14 years of experience in media and publication. International affairs, Politics and agriculture are area of Interest. Many articles written by Rakesh Singh published in … और पढ़ें

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