नई दिल्ली. भारत में म्यूचुअल फंड का दायरा तेजी से बढ़ रहा है और इसी के साथ म्यूचुअल फंड एजेंट यानी डिस्ट्रीब्यूटर बनने के मौके भी बढ़ रहे हैं. इस काम में समय की आजादी मिलती है, कम लागत में शुरुआत हो जाती है और कमाई हर महीने बढ़ती रहती है क्योंकि यह पूरी तरह दोबारा मिलने वाली कमाई पर आधारित है. अगर आप इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं, तो पूरी प्रक्रिया और कमाई का मॉडल यहां आसान भाषा में समझाया गया है.
इस काम की शुरुआत करने के लिए कुछ बेसिक दस्तावेज और एक छोटी सी परीक्षा की जरूरत होती है. आपकी उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए, आपके पास पैन और आधार कार्ड होना चाहिए और आपने 12वीं पास की हो. इसके बाद आपको एनआईएसएम (NISM) की परीक्षा देनी होती है, जिसे म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर एग्जाम कहा जाता है. यह परीक्षा लगभग 1500 रुपये में होती है, 100 सवाल आते हैं और 50 फीसदी नंबर लाने पर इसे पास माना जाता है. इसका सर्टिफिकेट 3 साल के लिए वैध होता है.
आगे क्या?
इसके बाद आपको एएमएफआई (AMFI) में रजिस्ट्रेशन कराकर एक एआरएन नंबर लेना होता है, जिसकी फीस लगभग 3000 रुपये होती है. इसके साथ ही केवाईडी यानी “नो योर डिस्ट्रीब्यूटर” की बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन भी जरूरी होती है. जब यह सब पूरा हो जाता है, तब आप अलग-अलग फंड हाउस में रजिस्टर होकर उनकी स्कीमें बेच सकते हैं.
कमाई कैसे होती है
म्यूचुअल फंड एजेंट की कमाई ट्रेल कमीशन से होती है. इसका मतलब है कि जब तक ग्राहक का पैसा फंड में लगा रहता है, तब तक आपको हर महीने या हर तिमाही कमीशन मिलता रहता है. यह कमीशन आम तौर पर 0.1 फीसदी से लेकर 2 फीसदी तक होता है, जो फंड के प्रकार और ग्राहक के लोकेशन पर निर्भर करता है. छोटे शहरों में नए निवेशकों को जोड़ने पर कमीशन थोड़ा ज्यादा मिलता है.
कमाई कितनी हो सकती है: एक नजर में
नीचे एक आसान टेबल है जिससे नए, मध्यम और अनुभवी एजेंट की सालाना कमाई का अंदाज़ा साफ हो जाता है.
| अनुभव | अनुमानित एयूएम (ग्राहकों का कुल निवेश) | सालाना कमाई |
|---|---|---|
| 1–2 साल | 25–30 लाख | 18000–22000 रुपये |
| 3–5 साल | 1–2 करोड़ | 75000–150000 रुपये |
| 10+ साल | 20 करोड़ या अधिक | 15 लाख रुपये या उससे ज्यादा |
कमाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि एयूएम हर महीने एसआईपी से बढ़ता है और मार्केट रिटर्न भी समय के साथ जोड़ता रहता है. जितनी लंबी अवधि तक ग्राहक जुड़े रहते हैं, उतनी ही स्थिर और बढ़ती हुई कमाई मिलती है.
डिस्ट्रीब्यूटर और आरआईए में क्या अंतर है
म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर ग्राहक से कोई फीस नहीं लेता. उसे सीधे फंड हाउस से कमीशन मिलता है. जबकि आरआईए यानी रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर ग्राहक से सलाह देने की फीस लेता है और सीधे प्लान की सलाह दे सकता है, जिसमें खर्च कम होता है. आरआईए पर कानूनी जिम्मेदारी ज्यादा होती है, जबकि डिस्ट्रीब्यूटर को सिर्फ गलत बेचने से बचना होता है.
नए नियम, बढ़ता बाजार और तकनीक की जरूरत
फरवरी 2026 से सेबी छोटे शहरों में नए निवेशकों और पूरे भारत में नई महिला निवेशकों को जोड़ने पर 1 फीसदी का अतिरिक्त इंसेंटिव देगी, जिसकी ऊपरी सीमा 2000 रुपये रखी गई है. यह कदम डिस्ट्रीब्यूटर के लिए बड़ा मौका है. दूसरी तरफ, डिजिटल प्लेटफॉर्म और डायरेक्ट प्लान अब बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं, इसलिए जो एजेंट इस काम में टिकना चाहते हैं, उन्हें ऑनलाइन ऑनबोर्डिंग, पोर्टफोलियो ट्रैकिंग और मजबूत ग्राहक सेवा पर ध्यान देना होगा.



